Wednesday, May 19, 2010

फिर बोतल से बाहर आया कंडी रोड का जिन्न

फिर बोतल से बाहर आया कंडी रोड का जिन्न




रामनगर- कालागढ़- कोटद्वार मोटर मार्ग को आम यातायात के लिये खोले जाने की माँग को लेकर उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर यूकेडी ने एक बार फिर इस मामले को सुर्खियों में ला दिया है। इस बार यह याचिका उत्तराखण्ड क्रांति दल के पी.सी. जोशी ने दायर की है जो कि इससे पूर्व कंडी रोड को आम यातायात के लिये खोले जाने के लिये चलाये गये आन्दोलन के अगुवा दस्ते में थे परन्तु अचानक दूसरे आन्दोलकारियों के साथ आन्दोलन की फार्म को लेकर हुए विवाद के चलते उन्होने इस आन्दोलन से अपने को अलग कर लिया था। कंडी रोड का यह मामला इससे पूर्व वर्ष 2006 में चर्चा में आया था, जब इस माँग को लेकर रामनगर में ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ था।
गौरतलब है कि टनकपुर (पूर्णागिरी) से हरिद्वार तक के लिये ब्रिटिश काल में आम यातायात के लिये इस कंडी मार्ग का उपयोग होता चला आया था। यह मार्ग हल्द्वानी, कालाढूँगी, रामनगर, लालढाँग, कालागढ़, होते हुए हरिद्वार व कोटद्वार जाता था। व्यापार, आवागमन व तीर्थ यात्राएँ इसी मार्ग से की जाती थीं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के दिनों में तराई के काशीपुर, रुद्रपुर, जसपुर, धामपुर आदि नगरों का विकास होने के कारण व्यापारी समुदाय ने जंगल से होकर गुजरने वाले इस परम्परागत कच्चे कंडी मोटर मार्ग को छोड़कर इसकी अपेक्षा तराई क्षेत्र के अधिक सुगम व डामरीकृत सरल मार्ग का उपयोग करना आरम्भ कर दिया, जिस कारण कालान्तर में यह उपेक्षित हो गया। वन विभाग ने भी इस मार्ग पर कोई यातायात न चलने के कारण इस पर चल रहा थोड़ा बहुत यातायात भी सुरक्षा की दृष्टि से बन्द करा दिया। अंग्रेजी काल में इस मार्ग की महत्ता इस बात से समझी जा सकती है कि उस दौर में ‘सब माउण्टेन रोड’ के नाम से जानी जाने वाली इस सड़क को ही आधार मानकर सरकार ने पर्वतीय व गैर पर्वतीय क्षेत्र का बँटवारा किया था। टनकपुर-हल्द्वानी-रामनगर -कालागढ़ कण्डी रोड क्षेत्र से ऊपर के क्षेत्रों को जलवायु के दृष्टिकोण से पर्वतीय व नीचे के क्षेत्र को मैदानी क्षेत्र घोषित किया गया था। इसी के आधार पर अधिकारियों एवं कर्मचारियों को पर्वतीय भत्ते का भुगतान मिलता था। सर्वे ऑफ इण्डिया के मानचित्र में भी इस रोड का चित्रण है।
सैकड़ों वर्ष पुरानी इस सड़क का मुद्दा उत्तराखण्ड के अलग राज्य बनने के बाद तब पहली बार सामने आया, जब इस क्षेत्र के निवासियों को यहाँ से प्रदेश की अस्थाई राजधानी देहरादून को जाने के लिये उ.प्र. के क्षेत्र से होकर गुजरना पड़ा। कंडी रोड की अपेक्षा कहीं अधिक लम्बा व दो-दो राज्यों को टैक्स देने की मार से मजबूर लोगो ने कंडी रोड को ही इस यातायात के लिये मुफीद माना था।
अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण ही उत्तराखण्ड संभवतः देश का ऐसा पहला राज्य बन गया था, जिसकी अस्थाई राजधानी (गढ़वाल मंडल) से उच्च न्यायालय (कुमाऊँ मण्डल) तक सड़क मार्ग से जाने के लिये दूसरे प्रदेश से होकर जाना पड़ता था। इसी कारण से अलग राज्य बनने के बाद कंडी रोड को आम यातायात के लिये खोले जाने की माँग मुखर रूप से उठाई गई। कुमाऊँ मण्डल क्षेत्र के लोगों का कहना था कि रामनगर से काशीपुर- जसपुर- अफजलगढ़ होकर देहरादून जाने के लिये रामनगर से कोटद्वार की दूरी 161 किमी. पड़ती है जबकि पुराने कंडी मार्ग (रामनगर- झिरना- लालढांग- कालागढ़) से यह दूरी मात्र 88 किमी. ही पड़ती है। इस मार्ग को खोलने के लिये क्षेत्रीय जनता ने लम्बे समय तक आन्दोलन भी किया था। इस दौरान राज्य के मुख्य सचिव से लेकर हर बड़े दरबार में आन्दोलनकारियों की आवाज गूँजी लेकिन नतीजा शून्य ही रहा। एक ओर जहाँ क्षेत्रीय जनता इस मार्ग को खुलवाने के लिये सड़कों पर उतर आई थी तो इस मार्ग के बीच में जिम कार्बेट नेशनल पार्क का मामला आ जाने के कारण पर्यावरणवादियों ने इस मामले में हस्तक्षेप कर इस सड़क को न खोलने की बात करनी आरम्भ कर दी। हाई-प्रोफाइल यह पर्यावरणविद् इस विवाद को सुप्रीम कोर्ट तक लेकर चले गये, जहाँ सुप्रीम कोर्ट ने रामनगर से कोटद्वार जाने वाले पुराने कंडी रोड व उप्र से होकर गुजरने वाले रोड की जगह पर्यावरणविदों की सलाह पर एक नया रोड मेप देते हुए 138 किमी. लम्बी दूसरी सड़क का प्रस्ताव दिया जिसका 95 किमी. हिस्सा उत्तराखण्ड व 43 किमी. हिस्सा उ.प्र. से होकर गुजरता था। इस मामले में क्षेत्रीय जनता का आरोप था कि इन पर्यावरणवादियों ने जिस रोड का प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट में दिया है, इस क्षेत्र के आसपास उन्होने जमीनें खरीद रखी हैं। बात यहाँ भी नहीं बनी जिस कारण इस क्षेत्र की जनता ने एक बड़ा आन्दोलन कंडी रोड की माँग के लिये खड़ा कर दिया। इस आन्दोलन के दौरान ही रामनगर-कालागढ़-कोटद्वार मोटर मार्ग संयुक्त संघर्ष समिति के भारी विरोध के बाद वर्ष 2006 में 23 सितम्बर को नैनीताल में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के समक्ष देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए 23 किमी. के उस क्षेत्र में, जहाँ पर्यावरणवादियों को पर्यांवरण के लिहाज से आपत्ति थी, पर फ्लाईओवरनुमा मार्ग (एलीवेटेड रोड) बनाने का सुझाव दिया था, जिससे कि यातायात के दौरान वन्यजीवों को कोई व्यवधान न पहुंचे। लोक निर्माण विभाग ने भी प्रधानमंत्री के इस हस्तक्षेप के बाद एक 992 करोड़ का प्रस्ताव बनाकर सरकार को दिया था, जिसमें रामनगर से लालढांग (18 किमी.) की लागत 198 करोड़, लालढांग से कालागढ़ (23 किमी.) की लागत 690 करोड़, कालागढ़ से पाखरो (24 किमी.) की लागत 66 करोड़ तथा पाखरो से कोटद्वार (23 किमी.) की लागत 338 करोड़ आँकी गई थी। इस मार्ग के बाद रामनगर से हरिद्वार की कुल लम्बाई 106 किमी. पड़ती जो कि अभी उ.प्र. वाले मार्ग से 185 किमी. पड़ती है। लेकिन अज्ञात कारणों से यह मामला फाइलों के ढेर में गुम हो गया।
हालाँकि उच्च न्यायालय ने इस मामले को सुनवाई के लिये मंजूर करते हुए राज्य सरकार व भारत सरकार से इस मामले में चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है। अब एक बार फिर कंडी रोड का मामला चर्चा में है लेकिन इस मामले में आज की व पूर्व की स्थिति में भारी अन्तर आ गया है। एक तो कार्बेट नेशनल पार्क की सीमा में जिला बिजनौर का हिस्सा रहे कालागढ़ वन प्रभाग के अमानगढ़ रेंज को भी मिलाकर इसका बाकायदा नोटिफिकेशन कर दिया गया है, जिससे पूर्व में पार्क के किनारे से हो कर गुजरने वाली यह कंडी रोड अब पार्क क्षेत्र के बीच में आ गई है जिससे पर्यावरणविदों का पक्ष और मजबूत हो गया है। इस शक्तिशाली लॉबी के विरोध को देखते हुए लगता है कि इस बार भी यह मामला यों ही अनसुलझा ही रह जायेगा।

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