Saturday, December 25, 2010

उत्तराखंड: कभी खुशी कभी गम में बीता गुजरा साल

अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और धार्मिक केन्द्रों के लिये पूरी दुनिया भर में मशहूर उत्तराखंड में गुजरा साल कभी खुशी और कभी गम के बीच बीता। जहां गुजरे वर्ष 2010 ने नन्हें उत्तराखंड की झोली में कई खुशियां डालीं वहीं कई सालों तक याद रखने वाली टीस भरा गम भी दे गया।

बीते साल की शुरूआती चार महीनों में उत्तराखंड में जहां दुनिया का सबसे बड़ा मेला महाकुंभ एक के बाद एक शाही स्नान को शानदार और शांतिपूर्वक सफल कराकर लाखों लोगों को राहत और खुशियां दे गया, वहीं आखिरी दिनों में राज्य में हुई प्रलयंकारी वर्षा, भूस्खलन और दुर्घटनाओं ने 200 से भी अधिक लोगों को मौत की नींद सुलाकर गहरा दर्द दे दिया।

बीते साल के 14 जनवरी से शुरू हुये महाकुंभ मेले में चार महीनों के दौरान आठ करोड़ 27 लाख 71 हजार लोगों ने गंगा में पूरी आस्था और शांति के साथ डुबकी लगाई। लेकिन सितम्बर और अक्टूबर महीने में राज्य में हुई वर्षा ने 140 सालों का रिकार्ड तोड़ते हुये 200 लोगों को मौत की नींद सुलाया, 600 से भी अधिक लोगों को घायल कर दिया तथा हजारों लोगों को बेघर होने पर मजबूर किया। इस हादसे से राज्य को बेहद गम का सामना करना पड़ा था।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के नेतृत्व में बीते साल दुनिया का पहला हिमनद प्राधिकरण गठित किया गया जो राज्य के 1500 से अधिक हिमनदों का अध्ययन करेगा। इस अध्ययन में दुनिया के कई विशेषज्ञ हिस्सा लेंगे। लेकिन उद्योगपतियों के लिये बीता साल उदासी लेकर आया जब केन्द्र सरकार ने मार्च में खत्म हुये विशेष औद्योगिक पैकेज की अवधि को बढ़ाने से इन्कार कर दिया। राज्य द्वारा कई बार अनुरोध किये जाने के बावजूद पैकेज राजनैतिक दांव पेंच के बीच फंस कर रह गया।

राज्य में तीन बड़ी बिजली परियोजनाओं का बंद होना भी उदासी का सबब बना। केन्द्र सरकार ने पर्यावरण रक्षा की दुहाई देते हुये 600 मेगावाट वाली लोहारीनागपाला परियोजना पर पांच अरब रूपये खर्च करने के बावजूद इसे बंद कर दिया। इसके साथ साथ राज्य सरकार की दो परियोजनाओं 480 मेगावाट वाली पाला मनेरी और 381 मेगावाट वाली भैरोंघाटी को भी बंद कर दिया। बिजली की संभावनायें समाप्त होने से लोगों को न केवल गम रहा बल्कि लोगों ने इसका पुरजोर विरोध भी किया।

केन्द्रीय योजना आयोग ने उत्तराखंड में बीते साल के दौरान घरेलू पर्यटकों की आमद में रिकार्ड बढ़ोत्तरी हासिल करने के लिये हिमालयी राज्यों में पहला स्थान प्रदान किया। राज्य में प्रलयंकारी वर्षा के बावजूद चार धाम मंदिरों में शामिल यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ में श्रद्धालुओं के कारण हुई रिकार्ड आमदनी ने जहां पर्वतीय लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरी वहीं प्राकतिक आपदा से त्रस्त उत्तराखंड ने भरपाई के लिये 21,000 हजार करोड़ रूपये की केन्द्र से मांग की लेकिन उसे मात्र 500 करोड़ रूपये मिलना मलाल का कारण बना। निशंक ने इस सिलसिले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक से मुलाकात की लेकिन केन्द्र ने उन्हें गुजरे साल में खाली हाथ ही रखा। हालांकि निशंक अभी तक उम्मीद लगाये हुये हैं कि उन्हें राहत मिलेगी।

उत्तराखंड में गुजरे साल गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिये स्पर्श गंगा परियोजना की शुरूआत की गयी और इसके लिये ड्रीम गर्ल के नाम से मशहूर अदाकारा हेमामालिनी को ब्रांड एम्बेसडर बनाया गया जो लोगों के लिये खुशी का कारण बना।

इसी तरह भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी को बाघ संरक्षण के लिये उत्तराखंड ने वाइल्ड लाइफ वार्डेन बनाकर राज्यवासियों को एक नायाब तोहफा दिया। राज्य की राजधानी में स्थित भारतीय सैन्य अकादमी ने अपनी स्थापना काल से अब तक पचास हजार से अधिक सैन्य अधिकारी देने का आंकड़ा गुजरे साल के दौरान ही पूरा किया जिससे न केवली उत्तराखंड को बल्कि पूरे देश को इस अकादमी पर नाज हुआ। राज्य में पूरा साल कभी खुशी कभी गम के बीच बीता लेकिन पर्वतीय लोगों ने किसी भी स्थिति में अपनी कर्मठता नहीं छोड़ी।

Wednesday, December 22, 2010

UTTRAKHAND SANTA CLAUSE



देखो-देखो बरफ़ गिरी है
कितनी प्यारी मखमल सी है
बर्फ़ के गुड्डे मन को भायें
चलो सभी के संग बनायें
गोल-मोल से लगते प्यारे
गाजर नाक लगाये सारे
आया जो क्रिसमस का मौसम
घर बाहर को कर दें रोशन
राजू क्यों है आज उदास
आओ चल कर पूछें पास
मम्मी बोली उसकी अब के
होंगे नहीं क्रिसमस पे तोहफ़े
उसने मां को खू़ब सताया
इसीलिये ये दंड पाया
सैन्टा उनको तोहफ़ा देते
मम्मी का जो कहना सुनते
हम अच्छे बच्चे बन जायें
सुंदर-सुंदर तोहफ़े पायें

Thursday, November 25, 2010

उत्तराखण्ड का पहाड़ डाड़ी काठी


मेर डण्डि कण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि -२
हैर बण मा बुराँसि का फूल, जब बण आग लगाण होला..
पीता पखों थैं फ्योलिं का फूल, पिन्ग्ला रंग मा रंग्याण होला ..
ळाइयां पैयां ग्वीराल फूलु ना-२, होलि धर्ति सजि देखि ऐइ …
बसन्त रितु म जैयि…
मेर डांडि....

रन्गील फागुन होल्येरोन कि टोलि, डांडि कांठियों रंग्यणि होलि...
कैक रंग म रंग्युं होलु क्वियि, क्वि मनि-मन म रंग्श्याणि होलि..
किर्मिचि केसरि रंग कि बाढ-२, प्रेम क रंगों मा भीजि ऐइ...
बसन्त रितु म जैयि….
मेर डांडि....

बिन्सिरि देय्लिओं मा खिल्दा फूल, राति गों-गों गितेरुं का गीत...
चैता का बोल, ओजियों का ढोल, मेरा रोंतेला मुलुके कि रीत...
मस्त बिग्रैला बैखुं का ठुम्का-२, बांदूं का लस्सका देखि ऐइ....
बसन्त रितु म जैयि...
मेर डंडि....

सैणा दमला र चैतै बयार, घस्यरि गीतों मा गुंज्दि डांडि...
खेल्युं मा रंग-मत ग्वेर छोरा, अट्क्दा गोर घम्डियंदि घंडि..
वखि फुन्डे होलु खत्युं मेरु भि बच्पन, -२ ऊक्रि सक्लि त ऊक्रि कि लैयि...
बसन्त रितु म जैयि...

मेर डण्डि कण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि??

Sunday, November 14, 2010

उत्तराखण्ड दागडियो दगडी चेटिंग


दागडिया बिगाड़ गेनी चेटिंग मा
हुनी छा अब हाकिंग भी चेटिंग मा
टाइम पास वे गे वू कु चेटिंग मा
क्या खुडी कि हुडी छा अब सेटिंग भी चेटिंग मा

दागडिया वे गेन बेकार अब चेटिंग मा
आंख भी होदन ख़राब यी चेटिंग मा
पहेली ता बोल्दन कि हम दोस्त छा
फिर बाद मा क्या बन जदन यी चेटिंग मा

खूब कर दन मस्ती दाग डिया चेटिंग मा
अब ता हार बात ही करदन दाग डिया चेटिंग मा
अब ता टेलीफोन भी बेकार वे गेन चेटिंग मा
अब ता सब बात हुनी छान ये चेटिंग मा



दाग डियो कि इंगलिश ख़राब वे गे चेटिंग मा
वे गेन सब दागडिया बदनाम ये चेटिंग मा
क्या मतलब होदू बात कनु कि पता चल गे अब सब ये चेटिंग मा
अब ता सब दाग डियो तय पता चल गे कि मोहोबत भी हुनी छा चेटिंग मा

Monday, November 8, 2010

दिवाली मुबारक


आई रे बग्वाल, कुछ करा रे धमाल ,
दिवा जालावा, अंध्या खेला,
घूमिक आवा थौला-मेला |

औलु यु मौका फ़िर अगला साल,
......आई रे बग्वाल, कुछ करा रे धमाल |
दिवाली मुबारक हो दग्ङया तुम्हार गाँव माँ भी ख्यलदा भेला छिल्लू का शुभ रात्री

आप सभी को दीपावली की शुभकामनायें

Tuesday, October 26, 2010

उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तराञ्चल),























उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तराञ्चल), उत्तर
भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण नवंबर २००० को कई वर्षों के
आन्दोलन के पश्चात भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया
था। सन २०००२००६ तक यह उत्तराञ्चल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में
स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम
...बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व
में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर
प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह
उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य
में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और
संस्कृत गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा
इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। से में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों

देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण
नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की
राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के
अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है। राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है।
राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को
बढ़ावा देने के लिये कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार
तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर
योजनायें प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बांध
परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में कई बार आलोचनायें भी की जाती रही
हैं, जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध
परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अन्ततः २००७ में
बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना
जाता है।

Friday, October 8, 2010

उत्तराखंड मा टिहेरी गढ़वाल जय चक्रबंदनी जोग माया खप्परभरनी


जय चक्रबंदनी जोग माया खप्परभरनी

जय चक्रबंदनी जोग माया खप्परभरनी
तू ही चामुंडा शैलपुत्री नंदा इंगला पिंगला दैत्याधाविनी
महानारी चंद्रघंटिका महाकालरात्रि कालीमाता
जब देवतों को अत्यचार हुए तब त्येर माता को जन्म हुए
राज राजेश्वरी गोरजा भवानी चमन्कोट चामुंडा
श्री शक्लेश्वर कार्तिकेय श्री देवी दैन्य संघारे
श्री गणेशाय नमः जाए नमः उद्हारिणी पिंगला महेश्वरी
महेश्वरी दैत्यधाऊ गेमन मिचाऊ तब त्वे देवी कै जाप सुनाऊ
जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
जय बोला तेरी जय बोला
जय बोला तेरी जय बोला
बल गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
बेली बधान माता बल तेरा मैती होला
बेली बधान माता बल तेरा मैती होला
मल बधान जालू माँ नंदा जी को डोला
शिव कैलाश जालू माँ नंदा जी का डोला
सिद्धपीठ नौटी से चले राज जात
त्येर मैतार नौटी से चले राज जात
नन्द केसरी में हौला गढ़ कुमो का साथ
नन्द केसरी में हौला गढ़ कुमो का साथ
जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
वर्षा पुजा हूनी वैदिनी का ताल
वर्षा पुजा हूनी वैदिनी का ताल
देख तेरा हाथून हवे राज्ञसू को काल
देख तेरा हाथून हवे राज्ञसू को काल
बारहू साल में त्येर चौसीघा हवे खांडू
बारहू साल में त्येर चौसीघा हवे खांडू
बान गो माँ भाई त्येरु देवता रे दुलातु
बान गो माँ भाई त्येरु देवता रे दुलातु
जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
रजा कनकपाल न चंदपुरान बती
रजा कनकपाल न चंदपुरान बती
कन्नोज का राजा छाणी दैज देन भेटी
कन्नोज का राजा छाणी दैज देन भेटी
१ बार ऊ भी बल माला खून ग्येन
१ बार ऊ भी बल माला खून ग्येन
अरे येन भग्यान हवेन नि घर बोडी एइन
अरे येन भग्यान हवेन नि घर बोडी एइन
जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
अध बाटा मलानी कुपुत्र हून ल्हेगे
अध बाटा मलानी कुपुत्र हून ल्हेगे
नर संहार ह्वेगे माता कुचील हवे गे
नर संहार ह्वेगे माता कुचील हवे गे
तब से नार का कालू न बनी रूप कुंद
तब से नार का कालू न बनी रूप कुंद
माँ कु श्राप ल्हेगे बची अस्थि और मुंड
माँ कु श्राप ल्हेगे बची अस्थि और मुंड
जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
भद्रेस्वर निस्मा चा कडू रो को धाम
भद्रेस्वर निस्मा चा कडू रो को धाम
६ मेहना बवून ६ दसौली का नाम
६ मेहना बवून ६ दसौली का नाम
पडो हो नंदा कु बल पैलू कुल सारी माँ
पडो हो नंदा कु बल पैलू कुल सारी माँ
जख बिराज मान चा भगवती काली माँ
जख बिराज मान चा भगवती काली माँ
जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
रूप कुंद पित्रू तर्पण दिए जांदु
रूप कुंद पित्रू तर्पण दिए जांदु
होम कुंद खाडू चौसिंघ पूजी जांदु
होम कुंद खाडू चौसिंघ पूजी जांदु
माता ९ दुर्गा की पुनि आरती पूजा देना
कैलाश की और चौसिंघ पाठी देना

Sunday, October 3, 2010

उत्तराखंड में बस सेवाएं स्थगित


गढ़वाल मोटर आनर्स यूनियन ने अपनी बस सेवा बरसात खत्म होने तक स्थगित कर दी है।

उत्तराखंड में पिछले पांच दशकों में सर्वाधिक वर्षा से हो रहे भूस्खलनों से अधिकांश मार्ग क्षतिग्रस्त हो गए है।

मार्ग ट्रटने के कारण गढ़वाल मण्डल में हजारों बसों का संचालन करने वाली गढ़वाल मोटर आनर्स यूनियन (जीएमओयू) ने अपनी बस सेवा बरसात खत्म होने तक स्थगित कर दी है। जिससे पहाड़ों में जीवन की गति थम सी गयी है। जीएमओयू ने यह निर्णय यात्रियों की सुरक्षा तथा सुविधा के तहत लिया है।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक जीएमओयू ने आपदा से बचने के लिए बस सेवाएं बंद कर दी है। यूनियन के अधिकारियों के अनुसार सड़कें क्षतिग्रस्त होने से यात्रियों को जगह जगह पर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

बसों का संचालन बन्द हो जाने से गढ़वाल के पौडी, चमोली और रूद्रप्रयाग जिलों में यातायात व्यवस्था पूरी तरह और टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून में आंशिक रूप से ठप्प हो गयी है।

Thursday, September 30, 2010

राम मंदिर


टीवी चैनल के कर्मचारी ने
अपने प्रबंध निदेशक से पूछा
‘सर, आपका क्या विचार है
अयोध्या में राम जन्म भूमि पर
मंदिर बन पायेगा
यह मसला कभी सुलझ पायेगा।’
सुनकर प्रबंध निदेशक ने कहा
‘अपनी खोपड़ी पर ज्यादा जोर न डालो
जब तक अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनेगा,
तभी तक अपने चैनल का तंबू बिना मेहनत के तनेगा,
बहस में ढेर सारा समय पास हो जाता है,
जब खामोशी हो तब भी
सुरक्षा में सेंध के नाम पर
सनसनी का प्रसंग सामने आता है,
अपना राम जी से इतना ही नाता है,
नाम लेने से फायदे ही फायदे हैं
यह समझ में आता है,
अपना चैनल जब भी राम का नाम लेता है
विज्ञापन भगवान छप्पड़ फाड़ कर देता है,
अगर बन जायेगा
तो फिर ऐसा मुद्दा हाथ नहीं आयेगा
कभी हम किसी राम मंदिर नहीं गये
पर राम का नाम लेना अब बहुत भाता है,
क्योंकि तब चैनल सफलता की सीढ़िया चढ़ जाता है,
इसलिये तुम भी राम राम जपते रहो,
इस नौकरी में अपनी रोटी तपते रहो,
अयोध्या में राम मंदिर बन जायेगा
तो उनके भक्तों का ध्यान वहीं होगा
तब हमारा चैनल ज़मीन पर गिर जायेगा।

Wednesday, September 8, 2010

उत्तराखण्ड में आस्था और विश्वास के साथ मनाए जाने वाले नंदा देवी मेला महोत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं।


मेले की तैयारी में सामाजिक और धार्मिक संगठनों सहित प्रशासन जोर-शोर से जुटा हुआ है।
एक सप्ताह तक चलने वाला यह महोत्सव 12 सितंबर से शुरू होकर 19 सितंबर को डोला भ्रमण के साथ संपन्न होगा ।
नैनीताल के जिलाधिकारी शैलेश बगौली ने बताया कि महोत्सव की तैयारियां जारी हैं। जिले के उप जिलाधिकारी अपने-अपने क्षेत्रों में चल रही तैयारियों का जायजा लेंगे।
अल्मोड़ा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सीडी पंत ने बताया कि मेले में जुटने वाली भारी भीड़ के मद्देनजर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। उन्होंने बताया कि मेला स्थल के पास पुलिस नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया है।
पंत ने बताया कि अल्मोड़ा स्थित नंदा देवी मंदिर में मेले की शुरुआत राजा बाज बहादुर चंद (सन् 1638-78) के शासन काल से हुई थी और यह चंद वंश की परम्पराओं से संबंध रखता है।
पंत ने बताया कि नंदा-सुनंदा की मूर्तिं कदली वृक्ष के स्तम्भ से बनती है और पुरानी परम्पराओं के अनुसार नंदा-सुनंदा की पूजा के लिए काशीपुर के राजा अभी भी आकर पूजा की शुरुआत करते हैं।
उन्होंने बताया कि लगभग 80-90 टोलियां आकर यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश करती हैं। यहां की जगरिए और बैरियों की गायकी भी काफी प्रसिद् है।
मां नंदा की पूजा पूरे हिमालय क्षेत्र में होती है, लेकिन उत्तराखण्ड, खासतौर से कुमाऊं में इस मेले की बात कुछ अलग ही है। कुमाऊं की संस्कृति समझने के लिए यह मेला सबसे उपयुक्त पाठशाला हैं।
मां नंदा के सम्मान में कुमाऊं और गढ़वाल में अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं। पर्वतवासी देवी नंदा को अपनी बहन-बेटी मानते आए हैं। नंदा की उपासना के प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषदों और पुराणों में भी मिलते हैं।
नंदा को नवदुर्गाओं में से एक माना जाता है। मेले की गतिविधि पंचमी से ही प्रारम्भ हो जाती है।
नैनीताल का प्रसिद् नंदा देवी मेला महोत्सव 12 सितंबर से शुरू होकर 19 सितंबर तक डोला भ्रमण के साथ संपन्न होगा। मेले का उद्घाटन 12 सितंबर को होगा। जिलाधिकारी 10 सितंबर को मेला क्षेत्र की व्यवस्थाओं का जायजा लेंगे ।
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उत्तराखंड गढ़वाली बोली के प्रचार-प्रसार के लिए साहित्य अकादमी ने पौड़ी में एक सम्मेलन आयोजित किया।



सम्मेलन में गढ़वाली बोली के व्याकरण,विकास और संवर्धन पर विस्तार से चर्चा हुई।
रोज़गार की तलाश में पहाड़ का युवा लगातार दूसरे राज्यों का रुख कर रहा है,जिसका असर यहां की परंपराओं और भाषा पर भी पड़ा है। विस्थापन के दर्द के बीच पहाड़ की भाषा खत्म ना हो जाए इस चिंतन के साथ साहित्य अकादमी ने पौड़ी में एक सम्मेलन का आयोजन किया।
इस सम्मेलन में मुख्य अतिथि रहे गढ़वाल के सांसद श्री सतपाल महाराज ने कहा कि अब कोशिश गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा को आठवीं अनुसूची में दर्ज़ करवाने की है।

पहाड़ी संस्कृति और भाषा के स्वरुप में लगातार बदलाव आता जा रहा है। ऐसे दौर में भाषाई संरक्षण के लिए की गई साहित्य अकादमी की ये पहल वाकई सराहनीय है।

Thursday, September 2, 2010

कृष्ण जैसे स्वर होठो से बरस जाते हैं ।


अश्रु के ये मोती लिए तेरा इंतज़ार करती हूँ
वृन्दावन के ग्वाले मैं तुझे प्यार करती हूँ

मन हरने वाले तुने प्राण क्यों ना हर लिए
अब दुःख होता हैं तेरी याद में राधा क्यों जिए

मथुरा क्या गया अपनी राधा को भूल गया हैं
तुझे पाने का अब राधा का सपना टूट गया हैं

सोने के महल तुझे तो लगता हैं भा गए
झाड़ वृन्दावन के मुझे रास गए

हजारो रानियाँ तू समुन्द्र से भी घेर लाया था
ढाई कोस दूर की राधा को ना देख पाया था

राधा ने तो अपना सर्वस्व तुझ पर छोड़ दिया था
अपनी हर मंजिल का रास्ता तुझ तक मोड़ दिया था

मेरे कृष्ण तेरे दर्शन की मै सदा प्यासी हूँ
विरह से उपजी प्यास बस आंसुओ से बुझाती हूँ

नटखट कान्हा तुझे मैंने किस घडी वर लिया था
क्यों एक छिछोरे में अपना मन धर लिया था

अगर मैं रूठ गयी तो तेरी बंसी की तान बिगड़ जाएगी
राजकुमारिया भले तुझे मिल जाये पर ये ग्वालिन बिछड़ जाएगी

राधा राधा बस इतने शब्द तेरे सुनने को मेरे कान तरस जाते हैं
मेरे कृष्ण मेरे कृष्ण जैसे स्वर होठो से बरस जाते हैं

Monday, August 30, 2010

भारी वष्रा से छलकने लगा टिहरी बांध

देहरादून 21 अगस्त.भाषा. उत्तराखण्ड में हो रही भारी वष्रा के चलते नदिायों का जलस्तर बढ़ने के कारण टिहरी बांध लबालब भरने लगा है । बांध ने अब तक का सबसे अधिक बिजली उत्पादन का रिकार्ड भी कायम कर लिया है ।

टिहरी जल विद्युत विकास निगम : टीएचडीसी : के आला अधिकारी के अनुसार एशिया का यह सबसे बड़े कृत्रिम जलाशय का जल स्तर पर्याप्त पानी आने से 816.5 मीटर से उपर चला गया है । और इसकी 820 मीटर तक भरे जाने की सीमा जल्दी ही आने वाली है ।

अधिकारी के अनुसार राज्य सरकार से इसकी अधिकतम जल भराव क्षमता 830 मीटर तक की अनुमति ने मिलने क कारण बांध से प्रतदिन 200 क्यूमेक्स पानी छोड़ा जा रहा है । गंगा में इतना अतिरिक्त पानी छोड़ने से मैदानी इलाकों मे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।

टीएचडीसी के उक्त प्रवक्ता के अनुसार इन दिनों बांध को लगभग 600 क्यूमेक्स पानी भागीरथी से तथा 400 क्यूमेक्स भिलंगना से मिल रहा है । काफी पानी मिल जाने से इन दिनों चारों टरबाइनें चलाई जा रही हैं।

इससे स्थापित क्षमता 1000 मेगावाट से अधिक 1060 मेगावाट का बिजली उत्पादन हो रहा है । गत दिन चारों मशीनों से 24.95 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन हुआ ् जो कि एक रिकार्ड है । चारों टरबाइनें चलाने से 500 क्यूमेक्स पानी नदी में छूट रहा है तथा इसके अलावा 200 क्यूमेक्स पानी व्यर्थ ही छोड़ना पड़ रहा है ।

Wednesday, August 25, 2010

लक्ष्मी महायज्ञ आज से, कलश यात्रा निकली

बखरी (बेगूसराय) मंगलवार से बखरी में पहली बार आयोजित हो रहे श्री महालक्ष्मी महायज्ञ को लेकर सोमवार को 108 सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा भव्य कलश यात्रा निकाली गयी। कलश यात्रा आयोजक श्री ऊं श्याम हनुमान मंदिर से निकलकर सम्पूर्ण बाजार की सड़कों से गुजर का यज्ञ स्थल पर पहुंची। यात्रा का नेतृत्व देवराहा बाबा दिव्य फाउंडेशन वृन्दावन के छोटे सरकार, यज्ञ के संयोजक नन्दलाल खेतान, कैलाश शर्मा, कार्यालय प्रमुख भोला चौधरी आदि कर रहे थे। इस मौके से कई आकर्षक झांकियां भी निकाली गयी। बताते चलें कि देवराहा बाबा दिव्य फाउंडेशन के द्वारा सम्पूर्ण भारत में पांच स्थानों पर महालक्ष्मी महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। जिसकी शुरूआत बिहार में पहली बार बखरी से की जा रही है।

Wednesday, August 18, 2010

बर्बाद हो रही खेती

farming‘भारत कृषि प्रधान देश है। यहाँ की 70 प्रतिशत जनसंख्या खेती पर आश्रित है,’’ यह वाक्य हम कक्षा दो से पढ़ते आये हैं। लेकिन उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद भी जनता के खेवनहारों ने कृषि की इस अमूल्य निधि की तरफ आँख उठाकर देखने की जरूरत नहीं समझी। जिस प्रकार पहाड़ों की सोना उगलने वाली धरती को उपेक्षित कर बंजर में तब्दील किया जा रहा है, उससे तो लगता है कि एक दिन सिर्फ चट्टानें रह जाने के कारण पहाड़ों को ‘हाड़’ ही कहा जाने लगेगा।

मुनस्यारी में तीस-पैंतीस साल पहले तक 80 प्रतिशत लोग कृषि-बागवानी से जीवन निर्वाह करते थे। आलू की खेती सर्वाधिक रूप बर्नियागाँव में होती थी। भले ही आज भी यहाँ पर उत्पादन में कुछ कमी अवश्य आयी है, मगर यह गाँव मूलतः आलू के कारण ही जाना जाता है। ‘बर्नियागाँव का आलू और बिहार का लालू’ कह कर लोग हँसी-ठिठोली भी करते हैं। इसी तरह हरी सब्जियों के लिए हरकोट गाँव की अपनी ख्याति है। हरकोट की चोती (मूली) का जो स्वाद और आकार होता है, उसका मुकाबला शायद ही कहीं हो सके। राजमा की नकदी फसल का उत्पादन क्वीरीजिमिया, प्यांगती, बोना, तोमिक, गोरीपार, ढीलम आदि दूरस्थ गाँवों में बहुतायत से होता है, लेकिन उचित मूल्य न मिल पाने से काश्तकारों में नाराजी है, जिससे इसके उत्पादन में भी गिरावट आयी है।

कुछ ही जगहों पर, और पुराने ख्यालातों के लोग ही जमीनी मुहब्बत के कारण कृषि-बागवानी में लगाव लगाये हुए हैं। उनके बाद शायद ये बगीचे भी सूख जायें। करोड़ो की जमीन-जायदाद की बात होती तो दसों वारिस खड़े हो जाते, लेकिन इन सुन्दर बाग-उपवनों के लिए उत्तराधिकारी ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। अब शायद हर किसी को तत्काल फल चाहिए, अखरोट की तरह 18 वर्ष के इन्तजार का धैर्य किसी को नहीं। उद्यमी राजेन्द्र सिंह कोरंगा बताते हैं कि एक समय ऐसा था जब मुनस्यारी के शास्त्री चौक में लोग 10-12 किमी. दूर बसन्तकोट, बीसा, दुम्मर, कव्वाधार, सेविला से पैदल चलकर केला, नारंगी, माल्टा, आड़ू, खुबानी, पुलम, नाशपाती, गन्ना आदि डोके में बोक कर दिन भर हर मौसम में यहाँ पर बिक्री कर अपने व अपने परिवार के लिए चाय, बीड़ी-तम्बाकू का खर्चा निकाल लेते थे। मदकोट के एक व्यक्ति ने तो नारंगी से इतना कमाया कि उसी के बलबूते एक मैक्स गाड़ी खरीद ली है और अब रोजाना पिथौरागढ़ से सवारियों को ढोने का अच्छा व्यवसाय चला रहा है, भले ही अब वह नारंगी बेचना भूल गया हो।

कृषि उद्यमियों की शिकायत है कि शासन और प्रशासन हमारी तरफ भूल कर भी नहीं देखते। न वन विभाग और न ही उद्यान विभाग उन्हें कोई प्रोत्साहन देते हैं। उद्यान विभाग से उन्हें कभी भी एक उन्नत प्रजाति का पौधा तक नहीं मिला। वन विभाग आज तक एक बन्दर को भगा पाने में भी सफल नही हो पाया। फसल लहलहाने से पूर्व से पकने तक इन वानरों का आतंक फैला रहता है। कभी-कभार वे छोटे बच्चों को चोट भी पहुँचा देते हैं। मुनस्यारी में मक्के की खेती में भी काफी गिरावट आयी है। भूमि की सर्वाधिक उर्वरा शाक्ति बढ़ाने वाली यह फसल आज सिर्फ छोटे से जमीन में सिमट कर रह गयी है। दूरस्थ गाँवों दूनामानी, आलम, दारमा, उच्छैती, वल्थी, जोशा में ही इसे आटे के रूप में बनाये जाने के लिए उत्पादन किया जा रहा है। जंगल जाकर निंगाल, जिससे डोका, तेता, डाला, राब्यों, म्वाल आदि का निर्माण किया जाता था, लाना भी आज नगण्य रह गया है। उद्यमी काश्तकार धरमु राम, जो पिछले 35 वर्षों से यह कार्य कर रहे हैं, बताते हैं कि कभी सरकार ने उन्हंे एक पैसे की सहायता तक नहीं दी। इसके बावजूद अपने पाँच बच्चों में से एक को वे यह शिल्पकला सिखाने की दिली तमन्ना रखते हैं। उन्हें आशा है कि उनका जगदीश उनकी इस पूँजी को अवश्य बचाये रखेगा। राजकीय इण्टर कालेज मुनस्यारी में दो दशक पूर्व मौन पालन की कक्षा चलती थी लेकिन कृषि मास्साब जितेन्द्र सिसौदिया के तबादले के बाद से यह कक्षा समाप्त हो गयी है। कुल मिलाकर राज्य गठन के बाद कृषि-बागवानी में गिरावट आयी है और राज्य सरकार इसके लिये पूरी तरह दोषी है।

Sunday, August 15, 2010

पौड़ी: आठवीं अनुसूची में शामिल होने के लिये सक्षम हैं कुमाँऊनी, गढ़वाली भाषा

साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित पौड़ी के संस्कृति भवन प्रेक्षागृह में सम्पन्न दो दिवसीय गढ़वाली भाषा सम्मेलन में यह निष्कर्ष उभर कर आया कि इन्डो-आर्यन के समय से चली आ रही गढ़वाली आठवीं अनुसूची में शामिल होने के लिये एकदम सक्षम भाषा है। यह बात साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष सतेन्द्रसिंह नूर ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में भी कही। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सांसद सतपाल महाराज ने कहा कि गढ़वाली को राजभाषा बनाने के लिये वे हरसंभव प्रयास करेंगे। इसके लिये आम सहमति बनने के लिये भी प्रयास किया जायेगा। विशिष्ट अतिथि भारतीय कविता विश्वकोश के मुख्य संपादक कपिल कपूर ने कहा कि यदि भाषा जीवित है तो संस्कृति व समाज जीवंत रहता है। गढ़वाली व कुमाउनी भाषायें बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से भारत में 16वें व 17वें स्थान पर हैं, इसलिये ऐसी भाषाओं को 8वीं अनुसूची में होना चाहिये।

बीज भाषण में सुप्रसिद्ध गीतकार एवं गायक (नरेन्द्र सिंह नेगी )ने गढ़वाली बोली-भाषा के इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए इस बात पर चिन्ता प्रकट की कि नई पीढ़ी अब इससे दूर हो रही है। यह गढ़वाली समाज में स्वाभाविक रूप से ग्राह्य हो इसके लिये काम करना होगा। अपने स्वागत भाषण में साहित्य अकादमी के सचिव अग्रहार कृष्णमूर्ति ने कहा कि भारत में हजारों बोलियाँ व भाषायें हैं और हरेक आदमी दो से तीन भाषायें जानता है। बड़े लेखक भी कई-कई भाषाओं में लिखते रहे हैं। साहित्य अकादमी द्वारा पिछले 50 सालों में 22 भाषाओं में 4,000 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं। इतनी भाषाओं में एक साथ प्रकाशन करने वाला दुनिया का यह अकेला संस्थान है। विभागाध्यक्ष लोककला एवं परफार्मिंग आर्ट्स केन्द्र के अध्यक्ष डॉ. डी.आर. पुरोहित ने आगन्तुकों का आभार प्रकट किया जो इसके उन्नयन में लगे हैं। कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवास राव ने किया।

पहले सत्र के अध्यक्ष, भाषा विज्ञानी डॉ. अचलानन्द जखमोला ने गढ़वाल सभा के तत्वावधान में तीन चौथाई तक बन चुके गढ़वाली शब्दकोश की प्रगति के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि गढ़वाली में अनन्त शब्द हैं, अनेक पौराणिक शब्द हैं और अनेक शब्द ऐसे हैं जिन्हें दूसरी भाषा में व्यक्त नहीं किया जा सकता। हमारा प्रयास है कि गढ़वाली की सभी शैलियों को इसमें प्रतिनिधित्व मिले। उन्होंने कहा कि कोष एक सन्दर्भ ग्रन्थ जैसा ही है। जर्मनी के हेडलबर्ग विश्वविद्यालय में गढ़वाली भाषा के शब्दों का वैज्ञानिकता पर अध्ययन कर रहे इन्डोलॉजी विभाग के आर.पी. भटट ने गढ़वाली की वर्णमाला से लेकर वाक्य विन्यास पर चर्चा करते हुए बताया कि आज हर 10 दिन में दुनिया में एक भाषा मर रही है और इस प्रकार 100 साल में 6 हजार भाषायें समाप्त हो जायेंगी। डॉ. डी. आर. पुरोहित ने गढ़वाली भाषा के चैनल की आवश्यकता बताई।

दूसरे सत्र में गढ़वाली लेखक सुदामा प्रसाद प्रेमी ने गढ़वाली लोकोक्तियों पर चर्चा की और इस विषय पर लम्बे समय से काम कर रहे शिक्षाधिकारी पुष्कर सिंह कण्डारी ने अपने द्वारा संग्रहीत की गई गढ़वाली की अनगिनत लोकोक्तियों का जिक्र किया। वीरेन्द्र पँवार ने गढ़वाली को जीवित रखने के लिये इसे रोजगार से जोड़ने की जरूरत बतलाई। तीसरे सत्र में शिवराजसिंह ‘निसंग’ ने गढ़वाली शब्दों की व्युत्पत्ति पर चर्चा करते हुए कहा कि प्राकृत से ही गढ़वाली निकली है। डा. आशा रावत ने गढ़वाली साहित्य और साहित्यकारों के रचनाकर्म पर प्रकाश डाला। पुराविद् डॉ. यशवन्तसिंह कटोच ने कहा कि गढ़वाली भाषा सुरक्षित रह सके, इसके लिये इसका अविरल प्रयोग जरूरी है। नरेन्द्र कठैत ने बताया कि किस प्रकार से राजाओं के शासनादेशों और दानपत्रों में गढ़वाली का उपयोग होता था।

दूसरे दिवस के चार सत्रों के पहले सत्र में डॉ. नन्दकिशोर ढौंढ़ियाल ने जागर व मांगल गीतों, पँवाड़ों के मूल रूप में सरंक्षण की आवश्यकता जताई। प्रेमलाल भट्ट ने कहा कि कत्यूरी काल में संस्कृत के शिलालेख व दानपत्र इस मान्यता को पुष्ट करते हैं कि उस समय लोकभाषा गढ़वाली के साथ दूसरी भाषा रही होगी। इस सत्र के अध्यक्षीय भाषण में सुप्रसिद्ध लेखक भगवती प्रसाद नौटियाल ने गढ़वाली में बन रहे शब्दकोश के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि गढ़वाली में हजारों शब्द ऐसे हैं जिनका ठीक-ठीक अंग्रेजी अर्थ निकालना जटिल काम है।

पाँचवे सत्र में बाल पत्रकारिता पर काम कर रहे भुवनेश्वरी महिला आश्रम के गजेन्द्र नौटियाल ने गढ़वाली नाटकों व नाटक करने वाली संस्थाओं का उल्लेख किया। गीतकार एवं गायक चन्द्रसिंह राही ने अपने प्रभावकारी सम्बोधन में कहा कि जब लोक बचेगा तो विधायें भी बचेंगी। फिलहाल धुनों को संरक्षित करने का प्रमुख तरीका उनका आडियो व वीडियो बनाना ही है। लोकगीत तभी हैं जब लोक धुन है। उन्होंने वादकी समुदाय को गढ़वाल का सर्वप्रथम रचनाकार बताया, जिन्होंने शिल्पकला से लेकर गायन तक की बुनियाद रखी। उत्तराखण्ड भाषा संस्थान व उत्तराखण्ड हिन्दी अकादमी की कार्यकारी अधिकारी व प्रभारी निदेशक सविता मोहन ने कहा – इन संस्थाओं के विधिवत काम करने के बाद से शोध काम को गति मिलेगी। उन्होंने कई योजनाओं की चर्चा की जो यह संस्थान करेंगे। उनका पहला काम भाषाई सर्वेक्षण होगा जो ग्रियर्सन ने सदियों पहले किया था।

छठे सत्र में अध्यक्षीय भाषण में अखिल गढ़वाल सभा के सचिव रोशन धस्माना ने कहा कि राजनीतिक मोर्चे पर इच्छाशक्ति की कमी के कारण गढ़वाली पिछड़ रही है। संपादक ‘खबर सार’ बिमल नेगी ने भी सरकार की उदासीनता का जिक्र किया। त्रिभुवन उनियाल ने समाचार पत्रों के गढ़वाली भाषा की स्थिति एवं गणेश खुगशाल ‘गणी’ ने लोकसंस्कृति और गढ़वाली विषय पर व्याख्यान दिये।

सप्तम सत्र में अध्यक्षीय व्याख्यान देते हुये इतिहासकार रणवीरसिंह चौहान ने गढ़वाली लोकगाथाओं के बारे में अपनी बात रखते हुए कहा कि जागर-पँवाड़े हमारी धरोहर हैं, जो श्रुत रूप से सदियों से चले आये थे किन्तु अब समाप्ति की कगार पर हैं। गढ़वाली कवि मदनमोहन डुकलान ने गढ़वाली की काव्य भाषा पर अपनी बात रखी। रामकुमार कोटनाला ने विभिन्न कोशों की जरूरत व आर.एस. असवाल ने गढ़वाली की प्रशाखा रवाँल्टी पर अपने विचार रखे।

समारोह में कवि सम्मेलन व गायन प्रस्तुतियाँ भी र्हुइं। कवि गोष्ठी में देवेश जोशी, ललित केशवान, नागेन्द्र जगूड़ी ‘नीलाम्बरम’, दर्शन सिंह बिष्ट, गणेश खुगशाल ‘गणी’, मुरली दीवान, ओमप्रकाश सेमवाल, जगदम्बा चमोला व अद्वैत बहुगण ने कवितायें-क्षणिकायें सुनायीं। लोककला एवं परफार्मिंग आर्टस द्वारा एक गढ़वाली नाटक का मंचन किया गया। दूसरे दिन गायिका बसन्ती बिष्ट की जागर, गढ़वाल विश्वविद्यालय के लोककला एवं निष्पादन केन्द्र की लता तिवारी एवं संजय पाण्डे ने नये सन्दर्भ में चैती गीतों व कुमाउंनी नौटंकी शैली की प्रस्तुतियों और वादकी बचनदेई व रामचरण की प्रस्तुति ने दर्शकों को झकझोर कर रख दिया। अन्त में नरेन्द्रसिंह नेगी ने जागर शैली से लेकर अपने चुनिन्दा गीतों को प्रस्तुत किया। इस अवसर पर बी. मोहन नेगी के द्वारा लगाई गढ़वाली साहित्य की 300 दुर्लभ पुस्तकों की प्रदर्शनी, कविता पोस्टर प्रदर्शनी के अलावा गढ़वाली वाद्य यन्त्रों, गढ़वाली गीतों, फिल्मों, लोक संगीत की कैसेट, सी.डी व डी.वी.डी. की प्रदर्शनी आकर्षण का केन्द्र बनी रही।

Saturday, August 14, 2010

उत्तराखंड गढ़वाली गाना

पहाङी समाज में नारी की भूमिका सौणा का मेहना मा अपना गो गाली और माँ तय छे याद कानी मी कन छो ये सोणा का महीना मा मी अपना सुसराल मा डाडा काठी मा कुयेडी चा लगी मा डोर चा लगनी भरी दिन मा भी यान चा जन अँधेरी रात वो यख सरग गगडानद मा मीन कन मा रेन यख घनघोर परदेस मा

सौणा का मेहना
सौण का मेहना
बुवे कनु कै रेणा
कुयेडी लौन्काली अन्देरी रात बरखा की झमणाटा

...ख़ुद तेरी लागली चौ डंडियों पोर सरग गगडानद हिरिरिरी
पापी बरखा झुकी आन्द बडुली लागली सौण का महिना ,

बुवे कानु कै रेणा,
कुयेडी लौन्काली सौण का मेहना,
बुवे कानू कै रेणा गाड गद्नियो स्वी स्यात घनघोर तुम परदेश ,

मी अकुली घोर ज्यूकडी डौरली सौण का मेहना, बुवे कानू कै रेणा ,
कुयेडी लौन्काली याकुलू सरेला , उनी प्राणी क्वासु सेर बस्ग्यल ,

अब दण - मण आंसू आंखी धोलाली सौण का महिना ,
बुवे कानु कै रेणा, कुयेडी लौन्काली डेरा नौन्याल ,
आर पुंगडियो धान बरखा का दिडो मां घांस कु भी जाण

झूली मेरी रूझाली सौण का म्हणा, बुवे कानू कै रेणा ,
कुयेडी लौन्काली
सौण भादों बर्खिकी चली गिनी ऋतू
गिनी मेरी आँखें नि ऊबेंई कानू के उबाली,
सौण का महीना बुवे कानू कै रेणा ,

कुयेडी लौन्काली अन्देरी राता,
बरखा की झमणाटा,
ख़ुद तेरी लागली
सौण का महीना

Monday, August 9, 2010

हरिद्वार कंवार मेला

ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं
पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌।

स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ॥


शिव के भक्तो सुन लो
फिर सावन आया है
बाबा ने तुमको
हरिद्वार बुलाया है
बेल चढाओ फूल चढाओ
और चढाओ गंगाजल
तेरे हर परेशानी का
बाबा कर देगा हल
शिव के भक्तों सुन लो….
मेरा जटाधारी ये शिव
नीलकंठ कहलाता है
हर भक्तों के जीवन से
विष वो पी जाता है
चलो उठाओ कावर भक्तों
सुख की घडी अब आया है
बाबा ने तुमको
हरिद्वार बुलाया है.
शिव के भक्तों सुन लो….
मेरा बाबा बड़ा ही दानी है
ये तो अंतर्यामी है
देव असुर सब इनको पूजे
कहलाता महादानी है
चलो गंगाजल भर के भक्तों

सावन में ये बाँटने आया है
बाबा ने तुमको
हरिद्वार बुलाया है
शिव के भक्तों सुन लो….

Sunday, August 8, 2010

नैनीताल दुआ करें कि नियम-कानूनों की अवहेलना के बावजूद बच जाये

nainital-lake-and-boats 10 जून को हुई इस ग्रीष्म की पहली बारिश ने नैनीताल को स्वच्छ व सुन्दर बनाए रखने के दावों को झुठला दिया। करीब दो घंटे की इस मूसलाधार बारिस से नालों, सड़कों, पैदल मार्गों का तमाम कूड़ा-कचड़ा, वैध-अवैध रूप से बने भवनों का नालों में पड़ा मलवा बहकर झील में समाने के साथ ही मालरोड में फैल गया। कई जगह सीवर लाईन चोक होकर बाहर फूटने से उसकी गंदगी सड़कों से होकर झील में बहने लगी। लोअर माल रोड तो जगह-जगह मलवे से पट गई। बारिश बंद होने पर प्रशासन के साथ झील व नगर संरक्षण से सम्बद्ध सभी विभाग, सहयोगी संगठन व नगर के प्रबुद्ध लोग मण्डलायुक्त की अगुवाई में नगर व झील की सफाई में जुट गए। सेना व स्वयंसेवी संगठनों ने भी कुछ हिस्सों को साफ रखने का संकल्प लिया। जिलाधिकारी शैलेश बगौली ने बताया कि मालरोड के ऊपरी क्षेत्र में एक हजार आवास चिन्हित किए गए हैं, जिनकी छतों का बरसाती पानी सीवर लाइन में जा रहा है। मंडलायुक्त कुणाल शर्मा ने जल निगम व जल संस्थान के अधिकारियों को सीवर लाइनों की तत्काल सफाई कर आवासीय भवनों के बरसाती पानी को सीवर लाइन में जाने से रोकने के निर्देश दिए और विशेषज्ञों की मदद लेकर सीवर चोक होने की समस्या का स्थाई समाधान करने को कहा।

अगले दिन झील के चारों ओर लोग अपने-अपने हिस्से की सफाई में जुट गए। मीडियाकर्मी आते और कुछ लोगों से बातचीत करते, कैमरा वाले फोटो खींच ले जाते। उधर पी.डब्ल्यू.डी. व झील विकास प्राधिकरण भी सक्रिय हो गये। एस्टिमेट बनाये जाने लगे। सिल्ट निकालने के लिये भारी भरकम जेवीसी मशीन झील में उतार दी गई। टी.वी. चैनलों व दैनिकों में रंगीन फोटो सहित समाचार आने लगे। सैकड़ों ट्रक मलवा नगर से दूर फेंका जाने लगा। पम्प हाऊस के पास एक जेवीसी मशीन के दलदल में फँस जाने से दो-तीन दिन लोअर माल में यातायात बाधित रहा। जेवीसी निकालने दो-तीन जेवीसी तथा क्रेन और मँगाने पड़े। गोताखोर, नाव वाले भी जेवीसी निकालने में जुटे। तमाशबीन लोगों की भीड़ से एक मेले का सा माहौल बन गया। लोग चटखारे लेते और अपनी राय भी देते। कहते- ऐसे कैसे बचेगा नैनीताल। यह सब झील संरक्षण के नाम पर आ रहे बजट को खपाने का खेल है। नैनीताल को सुरक्षित व स्वच्छ बनाए रखने के बुनियादी सवालों पर तो कोई बोल ही नहीं रहा है। हर प्रभावशाली व्यक्ति चाहे वह बिल्डर हो या माफिया, नेता हो या जनप्रतिनिधि सब नैनीताल को अपनी-अपनी तरह से बर्बाद करने पर तुले हैं। बरसात से पूर्व यह सब तो कुछ वर्षों से होता रहता है। क्या पूर्व में लिए गए निर्णयों पर अमल हुआ ? भूस्खलन तो कहीं हुआ नहीं, फिर इतनी सिल्ट सड़कों व तालाब में कैसे पहुँची ? भविष्य में ऐसा न हो, उसके लिए क्या पुख्ता इन्तजाम किये जा रहे हैं ? जगह-जगह फौवारे की तरह ऊपर उठ कर सड़क गन्दा कर झील में समाने वाले सीवर का स्थाई समाधान क्यों नहीं होता।

नैनीताल को बचाने की इस मुहिम में प्रशासन का चरित्र झलक रहा था। सड़कों व मालरोड में फैले मलवे को तत्काल हटाना जरूरी था। पर इस काम में लगे विभागों का आपस में कोई तालमेल ही नहीं था। सब एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे।

नैनीताल की सुरक्षा एवं इसको स्वच्छ रखने के संदर्भ में हमें इस नगर की समस्याओं को समग्र में देखना होगा। मगर हो यह रहा है कि झील संरक्षण, मिशन बटरफ्लाई, जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय नगरीय नवीनीकरण मिशन (जे.एन.एन.यू.आर.एम.) के रूप में आ रहे करोड़ो-अरबों रुपए के बजट को खपाने की ललक में हम सौंदर्यीकरण के नाम पर गैरजरूरी कामों के जरिये नगर को कंक्रीट के जंगल में बदलने की तैयारी कर रहे हैं। नगर की हरीतिमा, सूखते जा रहे जल-स्रोतों, पॉलीथीन की समस्या, यातायात नियंत्रण, क्षमता से अधिक भवनों के निर्माण पर रोक, नालों से मलवा बहाकर झील में भेज देने वालों को दण्डित करने जैसे सवालों को भूल जा रहे हैं।

नैनीताल की समस्याओं की छानबीन के सिलसिले में जब हमने सम्बन्धित विभागों के चक्कर लगाने शुरू किए तो नगरपालिका से हमें महंगे ग्लेज्ड कागज में छपे दो बहुरंगी फोल्डर मिले। मगर ये चकाचौंध कर देने वाले फोल्डर हमारी जिज्ञासाओं को शान्त करने में असमर्थ थे। पी.डब्ल्यू.डी. में पता चला कि करीब 13 लाख के एस्टीमेट के ऐवज में ‘राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना’ के तहत 3.39 लाख स्वीकृत हुआ है, जिसमें से बोट हाउस क्लब व नैना देवी मंदिर के निकट के नाला नं 21 व 23 की सफाई के लिए प्रान्तीय खंड को एक लाख तथा निर्माण खंड को दो लाख रुपए अवमुक्त हुए हैं। जेवीसी मशीनों द्वारा तालाब से सिल्ट निकालने और ट्रकों द्वारा उस मलवे को दूर फेंकने में आए खर्च का भुगतान अभी नहीं किया गया है। 1880 में आये जबर्दस्त भूस्खलन के बाद अंग्रेजों द्वारा नगर की सुरक्षा की दृष्टि से बनाये गये नालों के रखरखाव व उनमें भर गई सिल्ट को निकालने के लिए लोनिवि के पास न बजट है और न पर्याप्त मजदूर। पच्चीस-तीस वर्ष पूर्व तक इनकी देखरेख के लिए लोनिवि. की गैंग में 80 मजदूर काम करते थे। अब 24 मेट-बेलदार तथा कुछ मृतकाश्रित महिलाएँ ही रह गये हैं। नये मजदूरों की भर्ती पर रोक है। पहले इस मद में 10-12 लाख रुपया मिलता था, लेकिन राज्य बनने के बाद वह बंद हो गया। लोनिवि को इस सफाई अभियान के दौरान झील संरक्षण विभाग द्वारा की गई अनावश्यक बयानबाजी से नाराजगी है। सिल्ट निकालने के लिये जेवीसी जहाँ से झील में उतारी जाएगी, वहाँ कुछ नुकसान तो होगा ही। इसके लिये पूर्व से न कोई मार्ग बने हैं और न ही कोई स्थान तय हैं। लोनिवि ने भी पलटवार करते हुए झील संरक्षण परियोजना के तहत लेकब्रिज निर्माण में हुई एक बड़ी लापरवाही की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए स्पष्टीकरण माँगा है। पत्र में लिखा है कि तल्लीताल पोस्ट ऑफिस के पीछे बलिया नाले की ओर कराये जा रहे निर्माण कार्य से उसके नीचे झील के पानी की निकासी हेतु बने पाँच गेटों तक पहुँचने का मार्ग बंद कर दिए जाने से सफाई नहीं हो पा रही है। भविष्य में होने वाले खतरों की जिम्मेदारी झील संरक्षण विभाग की होगी।

झील संरक्षण परियोजना के परियोजनाधिकारी सी.एम. साह के अनुसार नैनीताल के लिए स्वीकृत कुल 47.96 करोड़ रुपए के बजट में से अवमुक्त 43.43 करोड़ रुपए का विभिन्न कार्यों में उपयोग कर लिया गया है। 12.7 किमी. लम्बी सीवर लाईन में 693 संयोजन जोड़े गए। 36 चिन्हित भवनों की नालियों से सीवर लाईन से जुड़ा कनेक्शन अलग कर दिया। 27 सामुदायिक शौचालयों में से 25 बना दिए, एरिएशन सितम्बर में पूरा होगा। अप्रेल 2008 से प्रारम्भ मिशन बटर फ्लाई योजना के तहत 38 स्वच्छता समितियों का गठन कर आठ सौ परिवारों के अलावा 32 होटलों, 10 रेस्टोरेन्टों, 17 विद्यालयों तथा 7 अन्य संस्थानों को इस मिशन का सदस्य बना लिया गया है। इसके अलावा 51 लाख गम्बूसिया, 20.5 लाख पुंटिस मछलियाँ झील से निकाल 1.15 लाख सिल्वर काक, और 15 हजार महासीर डाल दी गई हैं। कैचमेंट क्षेत्र स्नोभ्यू, बिड़ला, ठंडी सड़क में 33 हजार वृक्ष लगाये गए हैं।

मिशन बटर फ्लाई को शुरू हुए दो साल से ज्यादा हो गया है। इसकी समीक्षा होनी चाहिए। लोगों का कहना है कि इस योजना में सुपरवाइजर ज्यादा हो गए हैं, काम करने वाले कम। 2001 की जनगणना के अनुसार नगर की स्थायी जनसंख्या 39,639 है और कुल परिवार 9,386 हैं। इस बीच हाईकोर्ट के लिए तमाम विभागों के कार्यालय व आवासीय भवनों को खाली कर दिए जाने से जनसंख्या घटी ही होगी। लेकिन इन दो सालों में तमाम प्रचार के बावजूद मिशन बटरफ्लाई से आठ हजार परिवार ही जुड़ पाए हैं। होटल, ढाबे-रेस्टोरेन्ट, सरकारी गैर सरकारी संस्थान, आवासीय भवन आदि तो अभी इस योजना से जुड़े ही नहीं।

नैनीताल की सफाई का सवाल वैध-अवैध रूप से बन रहे भवनों के निर्माण व उनके मलवे के निस्तारण से भी जुड़ा है। 1984 में प्राधिकरण बनने के बाद यहाँ भवनों के निर्माण में तेजी आई। किसी का अंकुश नहीं रहा। तमाम नियम-कानूनों को ताक में रख कर, जिसे जहाँ मौका मिला भवन बनाने लगा। इस अपराध में हर तबका शामिल है। धनबल, बाहुबल वाले ही नहीं, सामान्य फड़ लगाने वाले लोग भी। आज भी प्राधिकरण को बड़ी रकम देकर नक्शा पास कराये या बगैर पास कराये मकान बनाने का सिलसिला जारी है। कुछ माह पूर्व तक रतन कॉटेज कम्पाउण्ड में जीर्णोद्धार के बहाने बनाया जा रहा एक विशाल भवन चर्चा में था। ताजा प्रकरण एक प्रभावशाली व्यक्ति द्वारा स्टोनले के निकट जिला पंचायत की जमीन में चौमंजिला भवन निर्माण का है। हालाँकि जिला पंचायत का कहना है कि उक्त जमीन गैरेज व सर्वेन्ट क्वार्टर बनाने के लिये लीज में दी गई है। जब ऐसे कामों का विरोध होता है या प्रशासन अचानक शिथिलता तज कर कार्रवाही करने लगता है तो राजनैतिक पहुँच वाले लोग, वकील आदि एकजुट होकर इससे बचने का रास्ता निकाल लेते हैं। दबाव बनने पर पुलिस-प्रशासन के साथ प्राधिकरण के लोग खानापूर्ति के लिए अवैध निर्माण को ध्वस्त करने का छिटपुट नाटक कर चुप हो जाते हैं।

दरअसल नैनीताल की समस्यायें बहुआयामी हैं, लेकिन इसका इलाज सिर्फ खानापूरी के रूप में हो रहा है। कड़े कदम उठाने का साहस न सरकार-प्रशासन के पास है और न कड़ाई बर्दाश्त करने का बूता यहाँ के निवासियों के पास। इसलिये नैनीताल के लिये केवल शुभकामनायें ही व्यक्त की जा सकती हैं, इसका स्थायी इलाज नहीं किया जा सकता।

Thursday, July 29, 2010

उत्तराखंड में सामने आया 400 करोड़ का घोटाला

ऋषिकेश। देवभूमि ऋषिकेश में गंगा नदी से कुछ ही दूरी पर बड़े जोरशोर से निर्माण कार्य चल रहा है। यहां रिहायशी कॉलोनी बसाई जाएगी लेकिन इस रिहायशी कॉलोनी के निर्माण के पीछे छुपा है उत्तराखंड का ऐसा जमीन घोटाला जिसे चुपचाप बहुत ही चालाकी से अंजाम दिया गया। करीब 400 करोड़ रुपए के इस घोटाले में शामिल हैं सत्ता से जुड़े रसूखदार लोग। यहां प्राइवेट रिहायशी कॉलोनी बनेगी लेकिन जमीन है सरकार की। सबसे चौंकाने वाली बात ये कि इस रिहायशी कॉलोनी को बसाया जा रहा है सालों से बंद पड़ी केमिकल फैक्टरी को शुरू करने के नाम पर।

दरअसल 1964 में कई एकड़ में फैली इस जमीन को उत्तर प्रदेश सरकार ने जाने-माने उद्योगपति नोरजी वाडिया को कैल्शियम कार्बोनेट बनाने वाली फैक्टरी के लिए दिया था। 2007 तक कंपनी पर नौरजी वाडिया और उनके परिवार का अधिकार था। 2002 में कंपनी को बीमार घोषित किए जाने के बाद से ही नौरजी वाडिया इसे दोबारा जिंदा करने के लिए इस जमीन के 15 एकड़ हिस्से को बेचने की सरकार से अनुमति मांग रहे थे लेकिन उनकी दाल नहीं गली।

जमीन सरकारी थी और इसे कंपनी को सिर्फ कैल्शियम कार्बोनेट के उत्पादन के लिए दिया गया था इसलिए सरकार ने 1964 में हुए एग्रीमेंट का हवाला देकर इनकार कर दिया। इसपर कंपनी 2005 में बीआईएफआर यानि बोर्ड आफ इंडस्ट्रियल फाइनेंस रिकन्सट्रक्शन की शरण में गई। जनवरी 2007 में बीआईएफआर ने कंपनी के प्रस्ताव को मान लिया। बीआईएफआर के आदेश के मुताबिक कंपनी को 14 महीने के भीतर जमीन बेचकर फैक्टरी को दोबारा शुरू करना था। मगर इसी बीच अचानक कंपनी का मैनेजमेंट बदला और मई 2008 में बीआईएफआर ने अपने पुराने फैसले पर रोक लगा दी। बीआईएफआर का कहना था कि ये फैसला पुराने मैनेजमेंट के लिए था। नए मैनेजमेंट पर ये फैसला लागू नहीं होता।

इसके बावजूद सरकार ने जून 2008 में कंपनी को जमीन बेचने की इजाजत दे डाली। केमिकल फैक्टरी के पास रिहायशी कॉलोनी नहीं बसाई जा सकती लेकिन बीआईएफआर के 2007 के फैसले को आधार बनाकर सरकार ने उसके लिए भी हरी झंडी दे दी। वही फैसला जिस पर बीआईएफआर ने एक महीने पहले ही रोक लगा दी थी लेकिन सरकार की दलील है कि उसे रोक के बारे में पता ही नहीं था। सरकार के मीडिया सलाहकार डॉक्टर देवेंद्र भसीन कहते हैं कि हमारे द्वारा उपलब्ध कराए गए कागजात पर अब वे अलर्ट हो गए हैं और नोटिस भेजकर निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई है।

बताया जाता है कि संघ और बीजेपी नेताओं ने कंपनी को टेकओवर किया है। उन्हें फायदा पहुंचाने के लिए 26 सितंबर 2009 को बाबू से लेकर कई विभागों के सचिव और मुख्यमंत्री तक ने सिर्फ एक दिन के अंदर जमीन को बेचने की इजाजत दे दी। यही नहीं 1 अक्टूबर, 2009 को मुख्यमंत्री ने अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर डेढ़ सौ करोड़ रुपए की लैंड यूज फीस भी माफ कर दी।

Wednesday, July 21, 2010

माँ अंजना ने तप करके हनुमान जैसे पुत्र को पाया था।


माँ अंजना ने तप करके हनुमान जैसे पुत्र को पाया था। वे हनुमानजी में बाल्यकाल से ही भगवदभक्ति के संस्कार डाला करती थीं, जिसके फलस्वरूप हनुमानजी में श्रीराम-भक्ति का प्रादुर्भाव हो गया। आगे चलकर वे प्रभु के अनन्य सेवक के रूप में प्रख्यात हुए – यह तो सभी जानते हैं।

भगवान श्री राम रावण का वध करके माँ सीता, लक्ष्मण, हनुमान, विभीषण, जांबवत आदि के साथ अयोध्या लौट रहे थे। मार्ग में हनुमान जी ने श्रीरामजी से अपनी माँ के दर्शन की आज्ञा माँगी कि "प्रभु ! अगर आप आज्ञा दें तो मैं माता जी के चरणों में मत्था टेक आऊँ।"

श्रीराम ने कहाः "हनुमान ! क्या वे केवल तुम्हारी ही माता हैं? क्या वे मेरी और लखन की माता नहीं हैं? चलो, हम भी चलते हैं।"

पुष्पक विमान किष्किंधा से अयोध्या जाते-जाते कांचनगिरि की ओर चल पड़ा और कांचनगिरी पर्वत पर उतरा। श्रीरामजी स्वयं सबके साथ माँ अंजना के दर्शन के लिए गये।

हनुमानजी ने दौड़कर गदगद कंठ एवं अश्रुपूरित नेत्रों से माँ को प्रणाम किया। वर्षों बाद पुत्र को अपने पास पाकर माँ अंजना अत्यंत हर्षित होकर हनुमान का मस्तक सहलाने लगीं।

माँ का हृदय कितना बरसता है यह बेटे को कम ही पता होता है। माता-पिता का दिल तो माता-पिता ही जानें !

माँ अंजना ने पुत्र को हृदय से लगा लिया। हनुमान जी ने माँ को अपने साथ ये लोगों का परिचय दिया कि 'माँ ! ये श्रीरामचन्द्रजी हैं, ये माँ सीताजी हैं और ये लखन भैया हैं। ये जांबवंत जी हैं, ये माँ सीताजी हैं और ये लखन भैया हैं। ये जांबवत जी हैं.... आदि आदि।

भगवान श्रीराम को देखकर माँ अंजना उन्हें प्रणाम करने जा ही रही थीं कि श्रीरामजी ने कहाः "माँ ! मैं दशरथपुत्र राम आपको प्रणाम करता हूँ।"

माँ सीता व लक्ष्मण सहित बाकी के सब लोगों ने भी उनको प्रणाम किया। माँ अंजना का हृदय भर आया। उन्होंने गदगद कंठ एवं सजल नेत्रों से हनुमान जी से कहाः "बेटा हनुमान ! आज मेरा जन्म सफल हुआ। मेरा माँ कहलाना सफल हुआ। मेरा दूध तूने सार्थक किया। बेटा ! लोग कहते हैं कि माँ के ऋण से बेटा कभी उऋण नहीं हो सकता लेकिन मेरे हनुमान ! तू मेरे ऋण से उऋण हो गया। तू तो मुझे माँ कहता ही है किंतु आज मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी मुझे 'माँ' कहा है ! अब मैं केवल तुम्हारी ही माँ नहीं, श्रीराम, लखन, शत्रुघ्न और भरत की भी माँ हो गयी, इन असंख्य पराक्रमी वानर-भालुओं की भी माँ हो गयी। मेरी कोख सार्थक हो गयी। पुत्र हो तो तेरे जैसा हो जिसने अपना सर्वस्व भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया और जिसके कारण स्वयं प्रभु ने मेरे यहाँ पधार कर मुझे कृतार्थ किया।"

हनुमानजी ने फिर से अपनी माँ के श्रीचरणों में मत्था टेका और हाथ जोड़ते हुए कहाः "माँ ! प्रभु जी का राज्याभिषेक होनेवाला था परंतु मंथरा ने कैकेयी को उलटी सलाह दी, जिससे प्रभुजी को 14 वर्ष का बनवास एवं भरत को राजगद्दी मिली राजगद्दी अस्वीकार करके भरतजी उसे श्रीरामजी को लौटाने के लिए आये लेकिन पिता के मनोरथ को सिद्ध करने के लिए भाव से प्रभु अयोध्या वापस न लौटे।

माँ ! दुष्ट रावण की बहन शूर्पणखा प्रभुजी से विवाह के लिए आग्रह करने लगी किंतु प्रभुजी उसकी बातों में नहीं आये, लखन जी भी नहीं आये और लखन जी ने शूर्पणखा के नाक कान काटकर उसे दे दिये। अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए दुष्ट रावण ब्राह्मण का रूप लेकर माँ सीता को हरकर ले गया।

करूणानिधान प्रभु की आज्ञा पाकर मैं लंका गया और अशोक वाटिका में बैठी हुई माँ सीता का पता लगाया तथा उनकी खबर प्रभु को दी। फिर प्रभु ने समुद्र पर पुल बँधवाया और वानर-भालुओं को साथ लेकर राक्षसों का वध किया और विभीषण को लंका का राज्य देकर प्रभु माँ सीता एवं लखन के साथ अयोध्या पधार रहे हैं।"

अचानक माँ अंजना कोपायमान हो उठीं। उन्होंने हनुमान को धक्का मार दिया और क्रोधसहित कहाः "हट जा, मेरे सामने। तूने व्यर्थ ही मेरी कोख से जन्म लिया। मैंने तुझे व्यर्थ ही अपना दूध पिलाया। तूने मेरे दूध को लजाया है। तू मुझे मुँह दिखाने क्यों आया?"

श्रीराम, लखन भैयासहित अन्य सभी आश्चर्यचकति हो उठे कि माँ को अचानक क्या हो गया? वे सहसा कुपित क्यों हो उठीं? अभी-अभी ही तो कह रही थीं कि 'मेरे पुत्र के कारण मेरी कोख पावन हो गयी.... इसके कारण मुझे प्रभु के दर्शन हो गये....' और सहसा इन्हें क्या हो गया जो कहने लगीं कि 'तूने मेरा दूध लजाया है।'

हनुमानजी हाथ जोड़े चुपचाप माता की ओर देख रहे थे। सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयो पिता.... माता सब तीर्थों की प्रतिनिधि है। माता भले बेटे को जरा रोक-टोक दे लेकिन बेटे को चाहिए कि नतमस्तक होकर माँ के कड़वे वचन भी सुन लें। हनुमान जी के जीवन से यह शिक्षा अगर आज के बेटे-बेटियाँ ले लें तो वे कितने महान हो सकते हैं !

माँ की इतनी बातें सुनते हुए भी हनुमानजी नतमस्तक हैं। वे ऐसा नहीं कहते कि 'ऐ बुढ़िया ! इतने सारे लोगों के सामने तू मेरी इज्जत को मिट्टी में मिलाती है? मैं तो यह चला....'

आज का कोई बेटा होता तो ऐसा कर सकता था किंतु हनुमानजी को तो मैं फिर-फिर से प्रणाम करता हूँ। आज के युवान-युवतियाँ हनुमानजी से सीख ले सकें तो कितना अच्छा हो?

मेरे जीवन में मेरे माता-पिता के आशीर्वाद और मेरे गुरुदेव की कृपा ने क्या-क्या दिया है उसका मैं वर्णन नहीं कर सकता हूँ। और भी कइयों के जीवन में मैंने देखा है कि जिन्होंने अपनी माता के दिल को जीता है, पिता के दिल की दुआ पायी है और सदगुरु के हृदय से कुछ पा लिया है उनके लिए त्रिलोकी में कुछ भी पाना कठिन नहीं रहा। सदगुरु तथा माता-पिता के भक्त स्वर्ग के सुख को भी तुच्छ मानकर परमात्म-साक्षात्कार की योग्यता पा लेते हैं।

माँ अंजना कहे जा रही थीं- "तुझे और तेरे बल पराक्रम को धिक्कार है। तू मेरा पुत्र कहलाने के लायक ही नहीं है। मेरा दूध पीने वाले पुत्र ने प्रभु को श्रम दिया? अरे, रावण को लंकासहित समुद्र में डालने में तू समर्थ था। तेरे जीवित रहते हुए भी परम प्रभु को सेतु-बंधन और राक्षसों से युद्ध करने का कष्ट उठाना पड़ा। तूने मेरा दूध लज्जित कर दिया। धिक्कार है तुझे ! अब तू मुझे अपना मुँह मत दिखाना।"

हनुमानजी सिर झुकाते हुए कहाः "माँ ! तुम्हारा दूध इस बालक ने नहीं लजाया है। माँ ! मुझे लंका भेजने वालों ने कहा था कि तुम केवल सीता की खबर लेकर आओगे और कुछ नहीं करोगे। अगर मैं इससे अधिक कुछ करता तो प्रभु का लीलाकार्य कैसे पूर्ण होता? प्रभु के दर्शन दूसरों को कैसे मिलते? माँ ! अगर मैं प्रभु-आज्ञा का उल्लंघन करता तो तुम्हारा दूध लजा जाता। मैंने प्रभु की आज्ञा का पालन किया है माँ ! मैंने तेरा दूध नहीं लजाया है।"

तब जाबवंतजी ने कहाः "माँ ! क्षमा करें। हनुमानजी सत्य कह रहे हैं। हनुमानजी को आज्ञा थी कि सीताजी की खोज करके आओ। हम लोगों ने इनके सेवाकार्य बाँध रखे थे। अगर नहीं बाँधते तो प्रभु की दिव्य निगाहों से दैत्यों की मुक्ति कैसे होती? प्रभु के दिव्य कार्य में अन्य वानरों को जुड़ने का अवसर कैसे मिलता? दुष्ट रावण का उद्धार कैसे होता और प्रभु की निर्मल कीर्ति गा-गाकर लोग अपना दिल पावन कैसे करते? माँ आपका लाल निर्बल नहीं है लेकिन प्रभु की अमर गाथा का विस्तार हो और लोग उसे गा-गाकर पवित्र हों, इसीलिए तुम्हारे पुत्र की सेवा की मर्यादा बँधी हुई थी।"

श्रीरामजी ने कहाः "माँ ! तुम हनुमान की माँ हो और मेरी भी माँ हो। तुम्हारे इस सपूत ने तुम्हारा दूध नहीं लजाया है। माँ ! इसने तो केवल मेरी आज्ञा का पालन किया है, मर्यादा में रहते हुए सेवा की है। समुद्र में जब मैनाक पर्वत हनुमान को विश्राम देने के लिए उभर आया तब तुम्हारे ही सुत ने कहा था।

राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम।।

मेरे कार्य को पूरा करने से पूर्व तो इसे विश्राम भी अच्छा नहीं लगता है। माँ ! तुम इसे क्षमा कर दो।"

रघुनाथ जी के वचन सुनकर माता अंजना का क्रोध शांत हुआ। फिर माता ने कहाः

"अच्छा मेरे पुत्र ! मेरे वत्स ! मुझे इस बात का पता नहीं था। मेरा पुत्र, मर्यादा पुरुषोत्तम का सेवक मर्यादा से रहे – यह भी उचित ही है। तूने मेरा दूध नहीं लजाया है, वत्स !"

इस बीच माँ अंजना ने देख लिया कि लक्ष्मण के चेहरे पर कुछ रेखाएँ उभर रही हैं कि 'अंजना माँ को इतना गर्व है अपने दूध पर?' माँ अंजना भी कम न थीं। वे तुरंत लक्ष्मण के मनोभावों को ताड़ गयीं।

"लक्ष्मण ! तुम्हें लगता है कि मैं अपने दूध की अधिक सराहना कर रही हूँ, किंतु ऐसी बात नहीं है। तुम स्वयं ही देख लो।" ऐसा कहकर माँ अंजना ने अपनी छाती को दबाकर दूध की धार सामनेवाले पर्वत पर फेंकी तो वह पर्वत दो टुकड़ों में बँट गया ! लक्ष्मण भैया देखते ही रह गये। फिर माँ ने लक्ष्मण से कहाः "मेरा यही दूध हनुमान ने पिया है। मेरा दूध कभी व्यर्थ नहीं जा सकता।"

हनुमानजी ने पुनः माँ के चरणों में मत्था टेका। माँ अंजना ने आशीर्वाद देते हुए कहाः "बेटा ! सदा प्रभु को श्रीचरणों में रहना। तेरी माँ ये जनकनंदिनी ही हैं। तू सदा निष्कपट भाव से अत्यंत श्रद्धा-भक्तिपूर्वक परम प्रभु श्री राम एवं माँ सीताजी की सेवा करते रहना।"

कैसी रही हैं भारत की नारियाँ, जिन्होंने हनुमानजी जैसे पुत्रों को जन्म ही नहीं दिया बल्कि अपनी शक्ति तथा अपने द्वारा दिये गये संस्कारों पर भी उनका अटल विश्वास रहा। आज की भारतीय नारियाँ इन आदर्श नारियों से प्रेरणा पाकर अपने बच्चों में हनुमानजी जैसे सदाचार, संयम आदि उत्तम संस्कारों का सिंचन करें तो वह दिन दूर नहीं, जिस दिन पूरे विश्व में भारतीय सनातन धर्म और संस्कृति की दिव्य पताका पुनः लहरायेगी।

ईर्ष्या-द्वेष और अति धन-संग्रह से मनुष्य अशांत होता है।



ईर्ष्या-द्वेष और अति धन-संग्रह से मनुष्य अशांत होता है। ईर्ष्या-द्वेष की जगह पर क्षमा और सत्प्रवृत्ति का हिस्सा बढ़ा दिया जाय तो कितना अच्छा !

दुर्योधन ईर्ष्यालु था, द्वेषी था। उसने तीन महीने तक दुर्वासा ऋषि की भली प्रकार से सेवा की, उनके शिष्यों की भी सेवा की। दुर्योधन की सेवा से दुर्वासा ऋषि प्रसन्न हो गये और बोलेः

"माँग ले वत्स ! जो माँगना चाहे माँग ले।"

जो ईर्ष्या और द्वेष के शिकंजे में आ जाता है, उसका विवेक उसे साथ नहीं देता लेकिन जो ईर्ष्या-द्वेष रहित होता है उसका विवेक सजग रहता है वह शांत होकर विचार या निर्णय करता है। ऐसा व्यक्ति सफल होता है और सफलता के अहं में गरक नहीं होता। कभी असफल भी हो गया तो विफलता के विवाद में नहीं डूबता। दुष्ट दुर्योधन ने ईर्ष्या एवं द्वेष के वशीभूत होकर कहाः

"मेरे भाई पाण्डव वन में दर-दर भटक रहे हैं। उनकी इच्छा है कि आप अपने हजार शिष्यों के साथ उनके अतिथी हो जायें। अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे भाइयों की इच्छा पूरी करें लेकिन आप उसी वक्त उनके पास पहुँचियेगा। जब द्रौपदी भोजन कर चुकी हो।"

दुर्योधन जानता था कि "भगवान सूर्य ने पाण्डवों को अक्षयपात्र दिया है। उसमें से तब तक भोजन-सामग्री मिलती रहती है, जब तक द्रौपदी भोजन न कर ले। द्रौपदी भोजन करके पात्र को धोकर रख दे फिर उस दिन उसमें से भोजन नहीं निकलेगा। अतः दोपहर के बाद जब दुर्वासाजी उनके पास पहुँचेगे, तब भोजन न मिलने से कुपित हो जायेंगे और पाण्डवों को शाप दे देंगे। इससे पाण्डव वंश का सर्वनाश हो जायेगा।"

इस ईर्ष्या और द्वेष से प्रेरित होकर दुर्योधन ने दुर्वासाजी की प्रसन्नता का लाभ उठाना चाहा।

दुर्वासा ऋषि मध्याह्न के समय जा पहुँचे पाण्डवों के पास। युधिष्ठिर आदि पाण्डव एवं द्रौपदी दुर्वासाजी को शिष्यों समेत अतिथि के रूप में आया हुआ देखकर चिन्तित हो गये। फिर भी बोलेः "विराजिये महर्षि ! आपके भोजन की व्यवस्था करते हैं।"

अंतर्यामी परमात्मा सबका सहायक है, सच्चे का मददगार है। दुर्वासाजी बोलेः "ठहरो ठहरो.... भोजन बाद में करेंगे। अभी तो यात्रा की थकान मिटाने के लिए स्नान करने जा रहा हूँ।"

इधर द्रौपदी चिन्तित हो उठी कि अब अक्षयपात्र से कुछ न मिल सकेगा और इन साधुओं को भूखा कैसे भेजें? उनमें भी दुर्वासा ऋषि को ! वह पुकार उठीः "हे केशव ! हे माधव ! हे भक्तवत्सल ! अब मैं तुम्हारी शरण में हूँ...." शांत चित्त एवं पवित्र हृदय से द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का चिन्तन किया। भगवान श्रीकृष्ण आये और बोलेः "द्रौपदी ! कुछ खाने को तो दो !"

द्रौपदीः "केशव ! मैंने तो पात्र को धोकर रख दिया है।"

श्री कृष्णः "नहीं, नहीं... लाओ तो सही ! उसमें जरूर कुछ होगा।"

द्रौपदी ने पात्र लाकर रख दिया तो दैवयोग से उसमें तांदुल के साग का एक पत्ता बच गया था। विश्वात्मा श्रीकृष्ण ने संकल्प करके उस तांदुल के साग का पत्ता खाया और तृप्ति का अनुभव किया तो उन महात्माओं को भी तृप्ति का अनुभव हुआ वे कहने लगे किः "अब तो हम तृप्त हो चुके हैं, वहाँ जाकर क्या खायेंगे? युधिष्ठिर को क्या मुँह दिखायेंगे?"

शातं चित्त से की हुई प्रार्थना अवश्य फलती है। ईर्ष्यालु एवं द्वेषी चित्त से तो किया-कराया भी चौपट हो जाता है जबकि नम्र और शांत चित्त से तो चौपट हुई बाजी भी जीत में बदल जाती है और हृदय धन्यता से भर जाता है।