Thursday, September 30, 2010

राम मंदिर


टीवी चैनल के कर्मचारी ने
अपने प्रबंध निदेशक से पूछा
‘सर, आपका क्या विचार है
अयोध्या में राम जन्म भूमि पर
मंदिर बन पायेगा
यह मसला कभी सुलझ पायेगा।’
सुनकर प्रबंध निदेशक ने कहा
‘अपनी खोपड़ी पर ज्यादा जोर न डालो
जब तक अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनेगा,
तभी तक अपने चैनल का तंबू बिना मेहनत के तनेगा,
बहस में ढेर सारा समय पास हो जाता है,
जब खामोशी हो तब भी
सुरक्षा में सेंध के नाम पर
सनसनी का प्रसंग सामने आता है,
अपना राम जी से इतना ही नाता है,
नाम लेने से फायदे ही फायदे हैं
यह समझ में आता है,
अपना चैनल जब भी राम का नाम लेता है
विज्ञापन भगवान छप्पड़ फाड़ कर देता है,
अगर बन जायेगा
तो फिर ऐसा मुद्दा हाथ नहीं आयेगा
कभी हम किसी राम मंदिर नहीं गये
पर राम का नाम लेना अब बहुत भाता है,
क्योंकि तब चैनल सफलता की सीढ़िया चढ़ जाता है,
इसलिये तुम भी राम राम जपते रहो,
इस नौकरी में अपनी रोटी तपते रहो,
अयोध्या में राम मंदिर बन जायेगा
तो उनके भक्तों का ध्यान वहीं होगा
तब हमारा चैनल ज़मीन पर गिर जायेगा।

Wednesday, September 8, 2010

उत्तराखण्ड में आस्था और विश्वास के साथ मनाए जाने वाले नंदा देवी मेला महोत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं।


मेले की तैयारी में सामाजिक और धार्मिक संगठनों सहित प्रशासन जोर-शोर से जुटा हुआ है।
एक सप्ताह तक चलने वाला यह महोत्सव 12 सितंबर से शुरू होकर 19 सितंबर को डोला भ्रमण के साथ संपन्न होगा ।
नैनीताल के जिलाधिकारी शैलेश बगौली ने बताया कि महोत्सव की तैयारियां जारी हैं। जिले के उप जिलाधिकारी अपने-अपने क्षेत्रों में चल रही तैयारियों का जायजा लेंगे।
अल्मोड़ा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सीडी पंत ने बताया कि मेले में जुटने वाली भारी भीड़ के मद्देनजर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। उन्होंने बताया कि मेला स्थल के पास पुलिस नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया है।
पंत ने बताया कि अल्मोड़ा स्थित नंदा देवी मंदिर में मेले की शुरुआत राजा बाज बहादुर चंद (सन् 1638-78) के शासन काल से हुई थी और यह चंद वंश की परम्पराओं से संबंध रखता है।
पंत ने बताया कि नंदा-सुनंदा की मूर्तिं कदली वृक्ष के स्तम्भ से बनती है और पुरानी परम्पराओं के अनुसार नंदा-सुनंदा की पूजा के लिए काशीपुर के राजा अभी भी आकर पूजा की शुरुआत करते हैं।
उन्होंने बताया कि लगभग 80-90 टोलियां आकर यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश करती हैं। यहां की जगरिए और बैरियों की गायकी भी काफी प्रसिद् है।
मां नंदा की पूजा पूरे हिमालय क्षेत्र में होती है, लेकिन उत्तराखण्ड, खासतौर से कुमाऊं में इस मेले की बात कुछ अलग ही है। कुमाऊं की संस्कृति समझने के लिए यह मेला सबसे उपयुक्त पाठशाला हैं।
मां नंदा के सम्मान में कुमाऊं और गढ़वाल में अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं। पर्वतवासी देवी नंदा को अपनी बहन-बेटी मानते आए हैं। नंदा की उपासना के प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषदों और पुराणों में भी मिलते हैं।
नंदा को नवदुर्गाओं में से एक माना जाता है। मेले की गतिविधि पंचमी से ही प्रारम्भ हो जाती है।
नैनीताल का प्रसिद् नंदा देवी मेला महोत्सव 12 सितंबर से शुरू होकर 19 सितंबर तक डोला भ्रमण के साथ संपन्न होगा। मेले का उद्घाटन 12 सितंबर को होगा। जिलाधिकारी 10 सितंबर को मेला क्षेत्र की व्यवस्थाओं का जायजा लेंगे ।
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उत्तराखंड गढ़वाली बोली के प्रचार-प्रसार के लिए साहित्य अकादमी ने पौड़ी में एक सम्मेलन आयोजित किया।



सम्मेलन में गढ़वाली बोली के व्याकरण,विकास और संवर्धन पर विस्तार से चर्चा हुई।
रोज़गार की तलाश में पहाड़ का युवा लगातार दूसरे राज्यों का रुख कर रहा है,जिसका असर यहां की परंपराओं और भाषा पर भी पड़ा है। विस्थापन के दर्द के बीच पहाड़ की भाषा खत्म ना हो जाए इस चिंतन के साथ साहित्य अकादमी ने पौड़ी में एक सम्मेलन का आयोजन किया।
इस सम्मेलन में मुख्य अतिथि रहे गढ़वाल के सांसद श्री सतपाल महाराज ने कहा कि अब कोशिश गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा को आठवीं अनुसूची में दर्ज़ करवाने की है।

पहाड़ी संस्कृति और भाषा के स्वरुप में लगातार बदलाव आता जा रहा है। ऐसे दौर में भाषाई संरक्षण के लिए की गई साहित्य अकादमी की ये पहल वाकई सराहनीय है।

Thursday, September 2, 2010

कृष्ण जैसे स्वर होठो से बरस जाते हैं ।


अश्रु के ये मोती लिए तेरा इंतज़ार करती हूँ
वृन्दावन के ग्वाले मैं तुझे प्यार करती हूँ

मन हरने वाले तुने प्राण क्यों ना हर लिए
अब दुःख होता हैं तेरी याद में राधा क्यों जिए

मथुरा क्या गया अपनी राधा को भूल गया हैं
तुझे पाने का अब राधा का सपना टूट गया हैं

सोने के महल तुझे तो लगता हैं भा गए
झाड़ वृन्दावन के मुझे रास गए

हजारो रानियाँ तू समुन्द्र से भी घेर लाया था
ढाई कोस दूर की राधा को ना देख पाया था

राधा ने तो अपना सर्वस्व तुझ पर छोड़ दिया था
अपनी हर मंजिल का रास्ता तुझ तक मोड़ दिया था

मेरे कृष्ण तेरे दर्शन की मै सदा प्यासी हूँ
विरह से उपजी प्यास बस आंसुओ से बुझाती हूँ

नटखट कान्हा तुझे मैंने किस घडी वर लिया था
क्यों एक छिछोरे में अपना मन धर लिया था

अगर मैं रूठ गयी तो तेरी बंसी की तान बिगड़ जाएगी
राजकुमारिया भले तुझे मिल जाये पर ये ग्वालिन बिछड़ जाएगी

राधा राधा बस इतने शब्द तेरे सुनने को मेरे कान तरस जाते हैं
मेरे कृष्ण मेरे कृष्ण जैसे स्वर होठो से बरस जाते हैं