Thursday, September 2, 2010

कृष्ण जैसे स्वर होठो से बरस जाते हैं ।


अश्रु के ये मोती लिए तेरा इंतज़ार करती हूँ
वृन्दावन के ग्वाले मैं तुझे प्यार करती हूँ

मन हरने वाले तुने प्राण क्यों ना हर लिए
अब दुःख होता हैं तेरी याद में राधा क्यों जिए

मथुरा क्या गया अपनी राधा को भूल गया हैं
तुझे पाने का अब राधा का सपना टूट गया हैं

सोने के महल तुझे तो लगता हैं भा गए
झाड़ वृन्दावन के मुझे रास गए

हजारो रानियाँ तू समुन्द्र से भी घेर लाया था
ढाई कोस दूर की राधा को ना देख पाया था

राधा ने तो अपना सर्वस्व तुझ पर छोड़ दिया था
अपनी हर मंजिल का रास्ता तुझ तक मोड़ दिया था

मेरे कृष्ण तेरे दर्शन की मै सदा प्यासी हूँ
विरह से उपजी प्यास बस आंसुओ से बुझाती हूँ

नटखट कान्हा तुझे मैंने किस घडी वर लिया था
क्यों एक छिछोरे में अपना मन धर लिया था

अगर मैं रूठ गयी तो तेरी बंसी की तान बिगड़ जाएगी
राजकुमारिया भले तुझे मिल जाये पर ये ग्वालिन बिछड़ जाएगी

राधा राधा बस इतने शब्द तेरे सुनने को मेरे कान तरस जाते हैं
मेरे कृष्ण मेरे कृष्ण जैसे स्वर होठो से बरस जाते हैं

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