ऋषिकेश। देवभूमि ऋषिकेश में गंगा नदी से कुछ ही दूरी पर बड़े जोरशोर से निर्माण कार्य चल रहा है। यहां रिहायशी कॉलोनी बसाई जाएगी लेकिन इस रिहायशी कॉलोनी के निर्माण के पीछे छुपा है उत्तराखंड का ऐसा जमीन घोटाला जिसे चुपचाप बहुत ही चालाकी से अंजाम दिया गया। करीब 400 करोड़ रुपए के इस घोटाले में शामिल हैं सत्ता से जुड़े रसूखदार लोग। यहां प्राइवेट रिहायशी कॉलोनी बनेगी लेकिन जमीन है सरकार की। सबसे चौंकाने वाली बात ये कि इस रिहायशी कॉलोनी को बसाया जा रहा है सालों से बंद पड़ी केमिकल फैक्टरी को शुरू करने के नाम पर।
दरअसल 1964 में कई एकड़ में फैली इस जमीन को उत्तर प्रदेश सरकार ने जाने-माने उद्योगपति नोरजी वाडिया को कैल्शियम कार्बोनेट बनाने वाली फैक्टरी के लिए दिया था। 2007 तक कंपनी पर नौरजी वाडिया और उनके परिवार का अधिकार था। 2002 में कंपनी को बीमार घोषित किए जाने के बाद से ही नौरजी वाडिया इसे दोबारा जिंदा करने के लिए इस जमीन के 15 एकड़ हिस्से को बेचने की सरकार से अनुमति मांग रहे थे लेकिन उनकी दाल नहीं गली।

जमीन सरकारी थी और इसे कंपनी को सिर्फ कैल्शियम कार्बोनेट के उत्पादन के लिए दिया गया था इसलिए सरकार ने 1964 में हुए एग्रीमेंट का हवाला देकर इनकार कर दिया। इसपर कंपनी 2005 में बीआईएफआर यानि बोर्ड आफ इंडस्ट्रियल फाइनेंस रिकन्सट्रक्शन की शरण में गई। जनवरी 2007 में बीआईएफआर ने कंपनी के प्रस्ताव को मान लिया। बीआईएफआर के आदेश के मुताबिक कंपनी को 14 महीने के भीतर जमीन बेचकर फैक्टरी को दोबारा शुरू करना था। मगर इसी बीच अचानक कंपनी का मैनेजमेंट बदला और मई 2008 में बीआईएफआर ने अपने पुराने फैसले पर रोक लगा दी। बीआईएफआर का कहना था कि ये फैसला पुराने मैनेजमेंट के लिए था। नए मैनेजमेंट पर ये फैसला लागू नहीं होता।
इसके बावजूद सरकार ने जून 2008 में कंपनी को जमीन बेचने की इजाजत दे डाली। केमिकल फैक्टरी के पास रिहायशी कॉलोनी नहीं बसाई जा सकती लेकिन बीआईएफआर के 2007 के फैसले को आधार बनाकर सरकार ने उसके लिए भी हरी झंडी दे दी। वही फैसला जिस पर बीआईएफआर ने एक महीने पहले ही रोक लगा दी थी लेकिन सरकार की दलील है कि उसे रोक के बारे में पता ही नहीं था। सरकार के मीडिया सलाहकार डॉक्टर देवेंद्र भसीन कहते हैं कि हमारे द्वारा उपलब्ध कराए गए कागजात पर अब वे अलर्ट हो गए हैं और नोटिस भेजकर निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई है।
बताया जाता है कि संघ और बीजेपी नेताओं ने कंपनी को टेकओवर किया है। उन्हें फायदा पहुंचाने के लिए 26 सितंबर 2009 को बाबू से लेकर कई विभागों के सचिव और मुख्यमंत्री तक ने सिर्फ एक दिन के अंदर जमीन को बेचने की इजाजत दे दी। यही नहीं 1 अक्टूबर, 2009 को मुख्यमंत्री ने अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर डेढ़ सौ करोड़ रुपए की लैंड यूज फीस भी माफ कर दी।
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