Saturday, August 14, 2010

उत्तराखंड गढ़वाली गाना

पहाङी समाज में नारी की भूमिका सौणा का मेहना मा अपना गो गाली और माँ तय छे याद कानी मी कन छो ये सोणा का महीना मा मी अपना सुसराल मा डाडा काठी मा कुयेडी चा लगी मा डोर चा लगनी भरी दिन मा भी यान चा जन अँधेरी रात वो यख सरग गगडानद मा मीन कन मा रेन यख घनघोर परदेस मा

सौणा का मेहना
सौण का मेहना
बुवे कनु कै रेणा
कुयेडी लौन्काली अन्देरी रात बरखा की झमणाटा

...ख़ुद तेरी लागली चौ डंडियों पोर सरग गगडानद हिरिरिरी
पापी बरखा झुकी आन्द बडुली लागली सौण का महिना ,

बुवे कानु कै रेणा,
कुयेडी लौन्काली सौण का मेहना,
बुवे कानू कै रेणा गाड गद्नियो स्वी स्यात घनघोर तुम परदेश ,

मी अकुली घोर ज्यूकडी डौरली सौण का मेहना, बुवे कानू कै रेणा ,
कुयेडी लौन्काली याकुलू सरेला , उनी प्राणी क्वासु सेर बस्ग्यल ,

अब दण - मण आंसू आंखी धोलाली सौण का महिना ,
बुवे कानु कै रेणा, कुयेडी लौन्काली डेरा नौन्याल ,
आर पुंगडियो धान बरखा का दिडो मां घांस कु भी जाण

झूली मेरी रूझाली सौण का म्हणा, बुवे कानू कै रेणा ,
कुयेडी लौन्काली
सौण भादों बर्खिकी चली गिनी ऋतू
गिनी मेरी आँखें नि ऊबेंई कानू के उबाली,
सौण का महीना बुवे कानू कै रेणा ,

कुयेडी लौन्काली अन्देरी राता,
बरखा की झमणाटा,
ख़ुद तेरी लागली
सौण का महीना

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