Thursday, July 15, 2010

खैरलिंग मेला कल्जीखाल क्षेत्र

खैरलिंग मेले

पौड़ी के निकट कल्जीखाल क्षेत्र में दो दिन के खैरलिंग मेले पर इस वर्ष प्रशासन, स्थानीय निवासियों, पशुबलि का विरोध करने वाली संस्था बिजाल से लेकर राजनीतिक दलों की भी नजर थी। सब इसी असमंजस में थे कि क्या इस वर्ष भी भैंसों की बलि दी जायेगी। वर्ष 2005 की घटना से प्रशासन चौंकन्ना था जब बलि प्रथा को रोकने के लिये गयी पुलिस को अपनी जान बचा कर भागना पड़ा और डीएसपी साहब को मुंडनेश्वर महादेव के मंदिर में ग्रामीणों द्वारा बँधक बना लिया गया। लगभग दो दर्जन ग्रामीणों पर मुकदमा चला, लेकिन गवाहों के बंधक होने के कारण यह मामला रफा-दफा हो गया। न्यायालय का भी मानना था कि इस प्राचीन परंपरा को बंद करवाने के लिये क्षेत्रवासियों से वार्तालाप कर जागृति पैदा करने की आवश्यकता है।

प्रशासन की सब से बड़ी परेशानी का सबब पशुबलि का विरोध कर रही ‘बिजाल’ संस्था थी कि कहीं तनाव उग्र न हो जाये। अतः मेला क्षेत्र में दो दिन पहले ही तीन दिन के लिये धारा 144 लगा दी गयी। कुछ स्थानीय लोगों को चिन्हित भी कर लिया गया, जो आग में घी डालने का काम कर सकते थे। हूटर बजाती राजस्व विभाग की गाड़ियों और पीएसी की तैनाती से कल्जीखाल क्षेत्र में माहौल सहमा-सहमा सा था।

लेकिन क्षेत्र में धारा 144 के बावजूद 2 जून को दर्जनों बकरों की बलि दी गयी, जिसका विरोध किसी ने भी नहीं किया और मेले के दिन भारी भीड़ जुटी। सुला व थैर गाँव से एक-एक भैंसे को बलि के लिये भी लाया गया। पशुबलि विरोधी संस्था ने मुंडनेश्वर महादेव मंदिर से सुरक्षित दूरी बनाये रखने में ही भलाई समझी। ‘बिजाल’ संस्था का यह रवैया प्रशासन को भी रास आया। वह भी मंदिर से दूर सरकारी गाड़ियों में बैठे मोबाइल पर ग्रामीणों से संपर्क बनाने की नाकाम कोशिश करते रहे। हालांकि संस्था की अध्यक्ष सरिता नेगी का कहना था कि प्रशासन ने बलि रोकने के बदले उन्हें ही मंदिर से काफी दूर रोक लिया। बहरहाल दो भैंसो की बलि को रोका न जा सका और सब मूक दर्शक बने रहे। कल्जीखाल ब्लॉक के कुछ जनप्रतिनिधियों का कहना था कि पशुबलि विरोधी संस्थायें यदि इस बलि को रोकने का पहले से प्रयास करतीं तो शायद दो नर भैंसों की बलि न दी जाती। सभी पक्षों ने एक दूसरे पर मेले में बलि के नाम पर राजनीति करने और सुर्खियाँ बटोरने का आरोप लगाया।

बजरंग दल ने एक ज्ञापन जिलाधिकारी को दिया जिसमें पशु क्रू्रता कानून 1960, धारा 28 का हवाला देते हुए मेले में धारा 144 लगाये जाने को अनुचित ठहराया गया है। धारा 28 के अर्न्तगत धार्मिक अनुष्ठानों के लिये प्रतिबंधित पशुओं को छोड़ अन्य पशुओं की बलि कानूनी अपराध नहीं है। बजरंग दल के प्रान्तीय कार्यकारिणी के सदस्य अमित सजवाण का कहना है कि अन्य धर्मों के त्योहारों में जब पशुबलि होती है, तब ये संस्थायें क्यों मूक बनी रहती हैं ?

चंद्रबदनी मंदिर, कांड़ा और पौड़ी के आसपास कई ऐसे मंदिर हैं, जहाँ बलि प्रथा अब पूर्णतया समाप्त हो चुकी है। मुंडेश्वर महादेव मंदिर के निकट देवी के मंदिर में भी नर भैसों की बलि की संख्या में भी वक्त के साथ काफी कमी आयी है। भविष्य में शायद यह कुप्रथा यहाँ भी समाप्त हो जाये।

अक्सर गाँववासियों को बलि के प्रति शिक्षित करने की बात कही जाती है, लेकिन पिछले वर्ष बूँखाल में कालिंका देवी के मंदिर में दर्जनों नर भैंसों की बलि में पहाड़ों से पलायन कर चुके ज्यादा जागृत और समृद्ध परिवारों की भागीदारी स्थानीय निवासियों की अपेक्षा कहीं अधिक थी।






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