दो साल बाद सन 2012 में होने वाले उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक महोत्सव नंदा देवी राजजात की तैयारिया
इसमें दुनिया की रहस्यमयी झीलों में से एक रूपकुंड समेत 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित ज्यूरांगली दर्रा भी शामिल है। इस दर्रे को पार करने के लिए हिमालय के त्रिशूल पर्वत के पास से होकर गुजरना पड़ता है। अधिकतर आम और पर्वतारोहण से अनजान लोग यह यात्रा करते हैं, ऐसे में दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। पूर्व राजजात समिति के सचिव रहे भुवन नौटियाल कहते हैं कि इस बार यात्रियों की संख्या बढे़गी। इस वजह से अभी से ही इन स्थानों में आवाजाही और अन्य सुविधाओं के विस्तार के लिए प्रयास करने होंगे।
इस यात्रा में लोग नौटी से चार सींग वाले मेढ़े के लेकर नंदीकुंड तक जाते हैं। कई दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में चार सींग वाले मेढ़े की अगुवाई में देव यात्राएं निकाली जाती हैं। इस दौरान तकरीबन 21 जगह पड़ाव डालने के बाद यह यात्रा हिमालय के हिमाच्छादित पर्वत की जड़ पर स्थित नंदीकुंड मंेे संपन्न होती है। नंदा देवी को पार्वती का रूप माना जाता है। उन्हें शिव के पास कैलाश पर्वत तक विदा करने के लिए यह यात्रा उत्सव के रूप में मनाई जाती है। इसमें कई गांव से देव डोलियां निकलती हैं। इन्हें जात कहा जाता है। ये छोटी-बड़ी देव डोलियां नौटी से निकलने वाली चार सींग वाले मेढ़े के साथ मिलते हुए हिमालय पहुंचती हैं।
यह आयोजन गढ़वाल के राज परिवारों की ओर से शुरू किया गया था। अब उनके वंशज गढ़वाल के राजाओं के चांदपुर गढ़ी महल के पास कांसूवा गांव में रहते हैं। यात्रा इसी गांव के पास नौटी में नंदा के मंदिर से शुरू होती है। नंदा राजजात के आयोजन में प्रमुख भुमिका निभाने वाले भुवन नौटियाल ने बताया कि राजजात के आयोजन के लिए पहले मांडवी मनौती मेले का आयोजन 23-24 मार्च को उपरायीं देवी के मंदिर में होगा। यह मेला मांडवी मनौती के बाद इस साल दिसंबर में होगा। उसी दिन नंदा देवी राजजात 2012 का कार्यक्रम भी तय किया जा एगी।
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