उत्तराखंड के जवानों के शौर्य और मां के बलिदान की मार्मिक गाथा है

एक सिपाही के परिजनों कोक्या-क्या कष्ट उठाने पड़ते हैं तथाशहीद सपूतांे की माता केबलिदान को इस फ़िल्म में दर्शायागया है। यह पहली उत्तराखंडीफ़िल्म है जो कि संयुक्त रूप सेगढ़वाली और कुमाऊंनी इन दोनोंभाषाओं को मिलाकर बनायी गयीहै। सेंसर बोर्ड ने इस फ़िल्म कोगढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा मेंरजिस्टर न करते हुए उत्तराखंडीभाषा में रजिस्टर किया है। इसफ़िल्म का लेखन मुंबई के रंगमंचपर चर्चित नाम ज्योति राठौर नेकिया है। इस फ़िल्म में गढ़वालऔर कुमाऊं दोनांें क्षेत्रों कोदर्शाया गया है। अपने उत्तराखंड सेअथाह प्यार करनेवाले माधवानंदभट्ट के मुताबिक उनकी यह कृतिउत्तराखंडी फ़िल्म इतिहास में मीलका पत्थर साबित होगी। इसफ़िल्म को उन्होंने राष्ट्रीय फ़िल्मफेस्टिवल में ले जाने का निश्र्चयकिया है, ताकि राष्ट्रीय स्तर परउत्तराखंडी फ़िल्मों को प्रोत्साहनमिले और अधिक से अधिक लोगफ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में कार्यकरें।
माधवानंद भट्ट उत्तराखंड मेंफ़िल्म सिटी के निर्माण तथाउत्तराखंडी रंगमंच के कलाकारों कोउत्तराखंड सरकार से उचितप्रोत्साहन देने के पक्षधर हैं। विगतकई महीनों से उनकी उत्तराखंडसरकार से इस विषय पर चर्चाजारी है। भट्ट का कहना है कि, उत्तराखंड में प्रतिभाओं की कमीनहीं है। ज़रूरत है उन्हें सहीमार्गदर्शन और प्रोत्साहन देने की।जल्द ही यह फ़िल्म देश के अन्यमहानगरों में भी प्रदर्शित कीजायेगी।
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