Friday, March 19, 2010

राम झूला-ऋषिकेश

राम झूला-ऋषिकेश





शिवानंद आश्रम के सामने एक झूलेनुमा पुल बना हुआ है, जिसे राम झूले के नाम से जानते हैं। स्वर्गाश्रम क्षेत्र में जाने हेतु यह गंगा के उस पार से इस पार ले जाने वाला शॉर्टकट रास्ता है। यह पुल भार भी झेल सकता है। दुपहिया वाहन तो इसके ऊपर से अक्सर निकलते देखे जा सकते हैं। जब हम इसके ऊपर चलते हैं तो यह हमें झूलता हुआ महसूस होता है। हिचकोले खाते हुए, इस झूले के ऊपर से नीचे बह रही गंगा का विहंगम दृश्य देखा जा सकता हा


नीलकंठ महादेव (ऋषिकेश)






नीलकंठ ऋषिकेश में स्वर्ग आश्रम के ऊपर एक पहाड़ी मे 1,675 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित है। मुनी की रेती से यह सड़क मार्ग से 50 कि.मी. और नाव द्वारा गंगा पार करने पर 25 कि.मी. की दूरी पर अवस्थित है।

नीलकंठ महादेव क्षेत्र के सबसे पूज्य मंदिरों में से एक है। यह कहा जाता है कि नीलकंठ महादेव वह स्थान है जहां भगवान शिव ने समुद्र मंथन के दौरान विष पीया था। उनकी पत्नी, पार्वती ने उनका गला दबाया जिससे कि विष उनके पेट तक नहीं पहुंचे। इस तरह, विष उनके गले में बना रहा। इस कारण उनका गला नीला पड़ गया।

नीलकंठ नाम इसी पर आधारित है।अत्यन्त प्रभावशाली यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसकी नक्काशी देखते ही बनती है। अत्यन्त मनोहारी मंदिर शिखर के तल पर समुद्र मंथन का दृश्य चित्रित किया गया है ; और गर्भ गृह के प्रवेश-द्वार पर एक विशाल पेंटिंग में भगवान शिव को विष पीते भी दिखलाया गया है।

गर्भ गृह में फोटोग्राफी करने पर सख्त प्रतिबंध है। मंदिर के निकट एक लघु जल प्रपात भी है।नीलकंठ महादेव के रास्ते में गढ़वाल मंडल विकास निगम एक छोटे से सुविधा-केन्द्र का परिचालन भी करता है जहां आप अपने आप को तरोताजा कर सकते हैं। सामने की पहाड़ी पर शिव की पत्नी, पार्वती को समर्पित मंदिर है

जागेश्वर धाम के प्राचीन मंदिर हैं अध्यात्म का संगम

उत्तराखंड के अल्मोडा से 35किलोमीटर दूर स्थित केंद्र जागेश्वर धाम के प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र को सदियों से आध्यात्मिक जीवंतताप्रदान कर रहे हैं। यहां लगभग 250मंदिर हैं जिनमें से एक ही स्थान पर छोटे-बडे 224मंदिर स्थित हैं।उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियोंके कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरीराजा थे। जागेश्वर मंदिरों का निर्माण भी उसी काल में हुआ।

इसी कारण मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक भी दिखलाई पडती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है। कत्यरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चंद्र काल।

बर्फानी आंचल पर बसे हुए कुमाऊं के इन साहसी राजाओं ने अपनी अनूठी कृतियों से देवदार के घने जंगल के मध्य बसे जागेश्वर में ही नहीं वरन् पूरे अल्मोडा जिले में चार सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया जिसमें से जागेश्वर में ही लगभग 250छोटे-बडे मंदिर हैं। मंदिरों का निर्माण लकडी तथा सीमेंट की जगह पत्थर की बडी-बडी स्लैबों से किया गया है।

दरवाजों की चौखटें देवी देवताओं की प्रतिमाओं से अलंकृत हैं। मंदिरों के निर्माण में तांबे की चादरों और देवदार की लकडी का भी प्रयोग किया गया है।जागेश्वर को पुराणों में हाटकेश्वरऔर भू-राजस्व लेखा में पट्टी पारूणके नाम से जाना जाता है। पतित पावन जटागंगाके तट पर समुद्रतल से लगभग पांच हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र जागेश्वर की नैसर्गिक सुंदरता अतुलनीय है।

कुदरत ने इस स्थल पर अपने अनमोल खजाने से खूबसूरती जी भर कर लुटाई है। लोक विश्वास और लिंग पुराण के अनुसार जागेश्वर संसार के पालनहारभगवान विष्णु द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिगोंमें से एक है।पुराणों के अनुसार शिवजी तथा सप्तऋषियोंने यहां तपस्या की थी।

कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजयमें स्थापित शिवलिंगको कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की।

शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएंपूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएंही पूरी हो सकती हैं।

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